Tuesday, March 25, 2025
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मोबाइल देवी को थमालि (दरांती) लेकर ढूंढने सिलोगी पहुंची भद्र महिला।

मोबाइल देवी को थमालि (दरांती) लेकर ढूंढने सिलोगी पहुंची भद्र महिला।

(मनोज इष्टवाल)
सचमुच आज भी पहाड़ के हिस्से का भोलापन भला हम पहाड़ी जन मानस से किस किस ने नहीं ठगा। यह भी कुछ ऐसी ही कहानी है। विगत 2 अक्टूबर की बात है जब मैं अपने भतीजे बहुओं के साथ भाई साहब के मासिक श्राद्ध हेतु ऋषिकेश घट्टू गाड़ गैंड़खाल देवीखाल के रास्ते होता हुआ सिलोगी पहुंचा तो ड्राइविंग सीट पर बैठे भतीजे सतीश ने बताया-चाचा पिछली बार यहीं से उस बोडी ने मुझसे लिफ्ट मांगी थी। जायज सा मेरा प्रश्न भी था कि किस बोडी ने?
तब कहानी कुछ यों सामने आई। उसने बताया कि कुछ दिन पूर्व जब वह देहरादून से गांव के लिए इसी रास्ते निकल रहा था तब एक उम्रदराज महिला जो लगभग 40-45 बर्ष की उम्र की रही हो ने उसे हाथ देकर कहा कि क्या वह चैलुसैण जा रहा है?उसने उन्हें गाड़ी में बिठा दिया तो बिना परिचय के ही महिला उसे बताने लगी कि- बब्बा मैं सुबह 6 बजे आ गयी थी सारे दिन उसका इंतजार करती रही। मैं तो फैसला करके आयी थी कि या तो वही उसको रख ले या फिर उसे छोड़ दे। गुस्सा इतना आया था कि वो मिल जाती तो मैं उसकी धौण (गर्दन) थमालि से काट देती लेकिन मिली नहीं।

वह बोला कि मैंने उस महिला से पूछा- बोडी कौन थी वो जिसकी आप गर्दन उड़ाने की बात कर रही थी। महिला बोली- बब्बा कहाँ सुनाऊं अपनी आपबीती ! मेरा पति तेरी तरह गाड़ी चलाता है। सब कुछ अच्छा चल रहा था। मेरी बेटी अभी 12वी में पढ़ रही है। बस मोबाइल क्या आया सब घर बिखर गया। अब वह कई बार तो बाजार ही रुक जाता है। ईं सिलोगी ही…! (इस सिलोगी ही)! उसके साथ…! उसके घर। रात रात को उसके फोन आते हैं और वह उसी से बात करता रहता है । कमाई भी सब उसी पर लुटाता है। अब तू ही बता मैंने कैसे अपने बच्चे पालने हैं कैसे बेटी की शादी करूंगी।
दो दिन से वह घर नहीं आया तो मैने ठान लिया कि या तो वही रहेगी या मैं ही रहूंगी। इसलिए सिलोगी आकर उसको ढूंढती रही कि यहां तो मिलेगी ही वो? लेकिन कहाँ मिलती सारे दिन इस बाजार में भटकती रही। सुबह से कुछ खाया पिया तक नहीं। कईयों को पूछा भी कि आप उसे जानते हो जो मेरे पति के साथ फोन पर बात करती है। सब यही कहते कि क्या नाम है और कहां की है । अब बब्बा तू ही बता कि नाम व पता मेरे पास होता तो मैं सीधे उसी के घर नहीं पहुंच जाती। ये बाजार वाले भी नहीं बता रहे कि वह रहती कहाँ है। सच कह रही हूं मिलती तो आज खून खचरी करके ही जाती। मेरा सारा सुख चैन उड़ा लिया उसने।
सतीश बोला- चाचा वह बोडी आगे बताती कि मेरा फोन बज गया। गाड़ी के वाई फाई से कनेक्टेड होने के कारण स्पीकर से आवाज आनी लाजिमि थी। मैंने फोन उठाया तो कम्पनी की महिला की स्कीम सम्बन्धी जानकारी टेलिकास्ट होने लगी। मैंने फोन बंद किया तो बोडी बोली- बब्बा स्ये रांड च वा। (बेटा यही औरत है वो)। ऐसी ही भाषा में बात करती है। जो मेरी समझ में नहीं आती। मेरा आदमी जब भी उसका फोन आता है मुझे पकड़ा कर कहता है ले बात कर ले उस से! अब तू ही बता…! जब उसकी भाषा ही समझ में नहीं आती तो क्या बात करुं। वह इकरपन्ति (एकसुर में) बोलती ही रहती है चाहे मैं कितनी गाली दे दूं।

मैं अब हंसने लगा था। बोडी बोली- बब्बा अभी तेरी उम्र छोटी है। ऐसी औरतों के फरेब में मत आना। फिर बोली- पिछले एक कुछ दिनों से तो मेरा आदमी घर पर ही है। कहता है कि आजकल वही कमाई खा रही है। इसलिए घर में कहाँ से लाकर दूँ।
सिलोगी आई तो देखा वहां कोई टैक्सी चल नहीं रही है। यह जिसकी टैक्सी चलाता है वह भी नहीं मिला। टैक्सी तो मिल गयी थी लेकिन वो औरत टैक्सी में आई नहीं। मैं तो उसी की दोब में बैठी थी।
सतीश बोला कि मैं जब ज्यादा हंसने लगा तो बोडी बोली- क्यों हंस रहा है तू? तब मैंने बोडी को समझाया- बोडी, ये जो औरत बोलती है वो सबके फोन में बोलती है। वह हमें बताती है कि फोन में क्या क्या स्कीम चल रही है। कौन सा गीत अपनी कॉलर ट्यून बनाओ। अभी फोन की लाइन ब्यस्त है और जाने क्या-क्या? यह आवाज पता नहीं कहाँ से रिकॉर्ड हुई होगी जो हम सब सुनते हैं। और तुम्हारे पतिदेव भी यही सुनते हैं जो मैंने सुनी तुमने सुनी। यह किसी की नहीं होती सिर्फ कंपनी की होती है। बोडी की अब आवाज बन्द हो गयी। हाथ में पकड़ी थमालि पर उसकी पकड़ ढीली हो गयी थी। फिर मैंने कहा- बोडी एक हफ्ते से टैक्सियों की हड़ताल है इसलिए तुम्हारे पतिदेव गाड़ी कहाँ से चलाएंगे और कहां से कमाई लाएंगे।
बोडी के मुंह से निकला-हैंs….! इसका मतलब सब सच बोल रहे थे। बब्बा तू तो बाहर का है तू क्यों झूठ बोलेगा। मी कतगा शकी रांड छऊं । जु उना दयवता आदिम पर शक कनु छायो। (मैं कितनी शकी औरत हूँ जो वैसे देवता स्वरूप पति पर शक कर रही थी)! तभी तो मैं सोच रही थी कि न वो दिखने में इतने खूबसूरत हैं न ही वो ऐसे हैं फिर वो वैसे ही कैसे गये। बब्बा तूने आज मेरा मन का वहम दूर कर दिया वरना मैं कई दिनों से न खा पा रही थी न सो पा रही थी। इन्होंने भी बहुत समझाने की कोशिश की पर मेरी ही मति खराब थी कि यह किसी के चक्कर में पड़ गए।
सतीश बोला मैंने अभी मोड़ काटा ही था कि बोडी बोली- हे बब्बा रोक रोक। मुझे यही उतरना है । मुझे देविखेत जाना है। और मैंने कार रोकी बोडी को उतारा समझाया व ढांढस बंधाया कि यह हर किसी के फोन में बोलती है। बोडी के आंखों में अब पछतावे के आंसू थे। वह हाथ जोड़ती बोली- जुगराज रै बाबा!
सतीश ने फिर इसी जगह कार रोकी और बोला- यार चाचा,मैंने सही तो किया ना। कहीं सचमुच ही वह आदमी कहीं और इन्वॉल्व हो तो बोडी की नजर में मैं भी उसी की तरह साबित हो गया तो! मैंने उसका कंधा दबाया और बोला- चल गाड़ी आगे बढ़ा! तूने जो किया अच्छा किया एक गृहस्थ को बचाने का यही अनूठा प्रयास है। महिला के मन का सन्ताप दूर कर तूने फिर से उसकी जिंदगी पटरी पर ला दी। ईश्वर करे सब ठीक हो।
अब सतीश के चेहरे पर संतोष था।
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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