Wednesday, October 16, 2024
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माँ भुवनेश्वरी सिद्ध पीठ सांगुडा (बिलखेत)! क्या शुक शावक ने यहीं सुनी थी अमर कथा?

(मनोज इष्टवाल)

मुझे आज भी याद है 2 अक्टूबर 1997 की वह रात्रि जब आसमान में तारे टिमटिमा रहे थे। मैं गढवाळी फीचर फिल्म “ब्वारी होत इनि” का प्रोडक्शन कंट्रोलर था व हमारी फ़िल्म की शूटिंग नयार घाटी के बिलखेत गांव में हो रही थी जबकि सम्पूर्ण प्रोडक्शन टीम के ठहरने खाने की व्यवस्था सांगुडा में माँ भुवनेश्वरी आश्रम में की गई थी। मात्र फ़िल्म निर्माता सूर्यप्रकाश शर्मा (चंदोला गुरु जी के यहां), अभिनेता बलराज नेगी व फ़िल्म के लेखक महाबीर नेगी व अन्य टीम मेम्बर व फीमेल यूनिट ही बिलखेत गांव में थी। अक्सर मैं खाना बांटने वाली टीम के साथ वापस लौटा करता था ।

उस दिन बड़ा अजब गजब हुआ। पूरे दिन शूटिंग में ब्यस्त होने के कारण रात्रि तक आदमी निढाल हो जाता था ऊपर से मामा शकुनि के नाम से प्रसिद्ध महाबीर नेगी के अत्याचार से खाना बनाने व खिलाने वाली टीम बहुत परेशान थी। यहां तक कि नौबत्त यह तक आ गयी कि हम काम छोड़कर जा रहे हैं। इन लोगों का रोज का एक काम हो गया था कि ये काम निबटाने के बाद शराब पीने बैठ जाएं व मामा महाबीर नेगी 11 बजे से पहले मतलब नहीं है ख़ाना खा लें। बेचारे रसोइए को इनके लिए सब बिल्कुल गर्मागर्म बनाना पड़ता था। पिछली रात इन्होंने दुबारा खाना गरम करवाने के लिए भेजा था तब यूनिट ने शिकायत की थी। आज मैंने ठान ली थी कि मामा शकुनि ने चिं चपड़ की तो आज मैं उसके इतने थप्पड़ रसीद करूँगा कि भूल जाएगा, लेकिन मुझे देखते ही मामा बिल्कुल खामोश रहा और हम लगभग सवा 11 बजे रात्रि वापस अपने कैम्प लौटने लगे।

बिलखेत से सांगुडा की दूरी बमुश्किल दो या तीन किमी भी नहीं है। गांव पार कर जैसे ही शहतूत का फार्म आया गाड़ी की लाइट खराब हो गयी। ड्राइवर उतरा लेकिन समझ नहीं आया कि उसे करना क्या है। बहरहाल खिली चांदना में दूर तक सड़क साफ दिखाई दे रही थी। मैं बोला चल यार धीरे-धीरे बिना उजाले के ही चल। ड्राइवर ने कहना माना व आगे बढ़ चला। लगभग 10 या 15 किमी प्रतिघन्टा स्पीड से चल रही गाड़ी अब रुकी तो मैंने बोला- अब क्या हुआ?

जबाब मिल गया था क्योंकि सड़क के ऊपर स्थित बिशालकाय पीपल बड़ के पेड़ से एक एक करके नौ या 10 शेरों या बाघों का झुंड सड़क में उतर गया था। ड्राइवर को तो बकबोळ लग गयी थी लेकिन मेरे साथ खाना बांटने गए दो और व्यक्ति बुरी तरह घबरा गए। मैंने माँ भुवनेश्वरी को नमन किया व कहा- आज पहला नवरात्र है, हमें तो माँ की सवारी दिख गयी है इसलिए सब प्रणाम करें। डर से सबके बदन के रोवें खड़े थे। अब बाघ मंद मंद गति से आगे बढ़ने लगे । जब सड़क में 200 मीटर का फासला हो गया तब ड्राइवर आगे बढ़ा। मैं फुसफुसाया- बिल्कुल धीमे चल।

जैसे ही बाघों ने छोटी पुलिया पार की व 20 मीटर आगे बढ़ते हुए नीचे मुड़े हम थोड़ी देर उन्हें जज करने के लिए रुक गए। तब देखा इसी गांव सांगुडा-दैसण का एक शराबी किसी को पिए में गाली बक रहा है। हम आगे बढ़े तो देखा यह बेबड़ा तो वह है जो खुद गांव में कच्ची बनाता है व दारू पीकर भुवनेश्वरी देवी आश्रम के बाहर आ बैठा है। हम सबने खुली चांदना में इन बाघों को माँ भुवनेश्वरी मन्दिर की तरफ बढ़ते देखा। अब तक सारी यूनिट के लोग बाहर आ गए थे। सब में यही कौतूहल था कि यह कैसे सम्भव हो सकता है कि इतने बाघ एक साथ दिखाई दें। ये सारे बाघ मन्दिर में गए और उन्हें हम सबने खुली आँखों से परिक्रमा करते देखा। यह आश्चर्यजनक ऐसा सच था जिस पर विश्वास कर पाना बेहद कठिन है। परिक्रमा के बाद बाघ नीचे नदी में उतर गए।

यों तो भवनेश्वरी मन्दिर में बर्षों पूर्व भी जा चुका था तब डॉ हरक सिंह रावत उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बने थे व वह समय दशमी का था। यह अजब इत्तेफाक है कि आज जब मैं यह लेख लिख रहा हूँ तब भी प्रथम नवरात्र का दिन है और तब भी प्रथम नवरात्र का दिन था। माँ भुवनेश्वरी के इस सिद्ध पीठ के बारे में कई किंवदन्तियाँ प्रचलन में हैं। शिब पुराण, स्कंद पुराण इत्यादि में इस क्षेत्र का बर्णन मिलता है। कई विद्धवान सतपुली को अपभ्रंश शब्द मानते हुए इसे शतपुत्री नाम का संबोधन देते हुये कहते हैं कि यह स्थान राजा दक्ष की 100 पुत्रियों का निवास स्थल रहा है। बांघाट को वामांग यानि दक्ष की वामनाग्नियों का निवास स्थल, बिलखेत को बिल्वक्षेत्र व दैशण को दक्ष प्रजाति का निवास स्थल मानते हैं। इसी गांव के सांगुडा क्षेत्र में माँ भुवनेश्वरी का मंदिर है, जहां यह भी प्रचलन में है कि आदिदेव महादेव ने माँ पार्वती को मन्दिर के पास विराजमान बड़े पौराणिक पीपल वृक्ष के नीचे अमर कथा सुनाई थी जिसे सुनते हुए माँ पार्वती तो सो गई थी लेकिन पीपल वृक्ष पर बैठे शुक शावक ने इसे पूरा सुन लिया व वह अमरत्व को प्राप्त हुआ।

वहीं विद्वान पंडितों का तर्क है कि यह वैदिक कालीन मणिद्वीप स्थित माँ भुवनेश्वरी का स्वयं चयनित स्थान गंगावतरण से पूर्व वायव्य सरोवर के मध्य स्थित था। गंगावतरण और भौगोलिक परिवर्तनों के कारण सरोवर के टूटने पर नारद गंगा का मिलान गंगा का मिलन व्यासघाट के पास हो गया। कालान्तर में म्लेच्छ जातितों के प्रभाव बाधा के फलस्वरूप देवी देवताओं ने अपने स्थान छोड़ मूल स्थानों में चले गए ।

माँ भुवनेश्वरी का मूल स्थान गुजरात बड़ोदरा से 80 किलोमीटर दूर उस समय की व्यापारिक मंडी बाबचि नामक स्थान पहुंच कर एक नमक के बोरे में स्थित हो गयी जो कालांतर में व्यापारिक गतिविधियों के साथ नमक का बोरा 1757 में नजीबाबाद पहुंचा । वहां से जूठामल जी के कंधे में सवार हो पुनः अपने मणिद्वीप पहुँचा जिसे वर्तमान में सांगुडा नाम से जाना जाता है। 1657 में यह भूमि रावतों का तोक होने के कारण जूठामल नेगी की अनुनय विनय पर माँ भुवनेश्वरी भूमि के लिए अमर देव सिंह रावत के सपने में गयी और उन्हें भूमि दान का आदेश दिया। उन्होंने प्रसन्नचित भूमि दान कर कलदार धन के लिए नेत्रमणि नैथानी जो उस समय नैथाणा के पधान थे और अर्थ सम्पन्न थे का सुझाव दिया फिर माँ ने नेत्रमणि नैथानी को अर्थ व्यवस्था की जिम्मेदारी दी। नेत्रमणि नैथानी ने उस समय के विद्वान पुरोहित उत्सव शैलवाल का नाम माँ को सुझाया। माँ ने पंडित उत्सव शैलवाल को स्वप्न में दर्शन देकर पुरोहिती का आदेश देकर अंतर्धान हो गयी।

माँ भुवनेश्वरी को लेकर कई अन्य दन्तकथायें प्रचलन में हैं। कहा जाता है कि बाल्यवस्था में यहीं भैंसे चुगाते हुए पुरिया नैथानी ने राजा भरतरी की बनाई झूठी खिचड़ी खा ली थी जिस से वे ओजस्वी हुए व आगे चलकर गढ़वाल के राज दरबार में राजा के दूत व सलाहकार नियुक्त हुए। बताया तो यह भी जाता है कि जूठामल नेगी ने जिस जमीन पर यह नमक का भार नीचे रखा था जहां आज माँ भुवनेश्वरी का मंदिर है, वह पहले नैथानी वंशजों का चारागाह था व कालांतर में यहां रावत आ बसे। आज भी यह जमीन दस्तावेजों में पुरिया नैथानी के वंशजों के नाम दर्ज है।

इस पर अभी ब्यापक शोध की आवश्यकता है क्योंकि सही तस्वीर सामने नहीं आ पा रही है। जहां तक मेरा निजी मत है उसके अनुसार माँ भुवनेश्वरी ने जिस स्थान को चुना है वह निश्चित तौर पर शक्ति शिब का ओजपुंज है व यहां मन्नत मांगने से माँ सबका कल्याण करती है। कई नैथानी जाति के बन्धु बांधव इसी माँ के आशीर्वाद से विश्व भर में नाम कमा रहे हैं। माँ आप सबका कल्याण करे।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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