Friday, July 26, 2024
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महाभारत कालीन राजा विराट का किला विराट गढ़…! जिसके आज भी मौजूद हैं जौनसार-बावर में भग्नावेश!

महाभारत कालीन राजा विराट का किला विराट गढ़…! जिसके आज भी मौजूद हैं जौनसार-बावर में भग्नावेश!

(मनोज इष्टवाल)

उत्तराखंड के वर्तमान परिवेश में जब भी सांस्कृतिक मूल्यों, सामाजिक ताने-बानों व लोक संस्कृति की बात आती है तब अनायास ही ध्यान एक ऐसी धरती की खुशबु से मनोमस्तिष्क तर्र कर देता है जिसके एक छोर से तमसा (टोंस नदी ) व दूसरे छोर से यमुना नदी बहती है! उस से भी आश्चर्यजनक बात तो यह है कि जहाँ पर ये नदियाँ मिलकर एक होती हैं वहां से संस्कृति के रूप रंग खान-पान से लेकर हर बात पर पर बदलाव झलकना शुरू हो जाता है जबकि जहाँ तक तमसा यानि टोंस यमुना में नहीं मिली वहां तक वह चाहे उत्तरकाशी के रुपिन सुपिन नदी के संगम नैटवाड़ से उपजी लोक संस्कृति हो या फिर त्यूनी, अटाल से बहकर आगे बढ़ी क्व़ानु कोटी कालसी तक का सफर हो ! मीलों तक जहाँ चलकर इस नदी ने अपने साथ अपनी लोक संस्कृति का ताना-बाना ज़िंदा रखा और न सिर्फ जौनसार बावर बल्कि हिमाचल में भी लोक संस्कृति की बानगी ज़िंदा रखी! वही यमुना नदी का भी स्पर्श है! चाहे वह यमुनोत्री के उदगम स्थल से चलकर बडकोट, नौगाँव, लाखामंडल, डामटा तक एक ओर रवाई और दूसरी ओर जौनसार-बावर की सरहदों को लांघकर आगे बढ़ी हो या फिर डामटा के बाद लखवाड़ सरहद, कट्टा पत्थर तक जौनपुर की सरहद व जौनसार की सरहद लांघकर हरिपुर कालसी में टोंस या तमसा को अपने में विलय करती हो! दोनों ओर इन नदियों ने लोक संस्कृति व लोक समाज के हर ताने बाने को वर्तमान तक ज़िंदा रखा है! सचमुच इनकी घाटियों में बसे सारे गाँव आज भी इतने खुशहाल हैं कि सब सरसब्ज दिखाई देते हैं! ठेठ वैसे ही जैसे इनका लोक समाज व लोक संस्कृति!

इन्हीं दो नदियों के एक उतुंग शिखर पर बसा था राजा विराट का वैभव् शाली राजमहल विराट गढ़! जिसके भग्नावेश आज भी चीख-चीखकर हर वो दास्ताँ सुनाते नजर आते हैं जो हजारों साल पुरानी कही जा सकती है! कई मील तक एकड़ों में फैला वैराट गढ़ जिसे स्थानीय लोग विराट गढ़ के नाम से जानते हैं, राजधानी देहरादून से सडक मार्ग से एक रास्ता हरबर्टपुर, विकास नगर, कालसी होकर वैराट खाई पहुँचता जिसकी दूरी लगभग 85 किमी. के आस-पास है! वहीँ दूसरा मार्ग देहरादून मसूरी, कैम्पटी फाल, से यमुना पुल, लखवाड, नागथात होकर वैराट खाई पहुंचता है! वैराट खाई पहुंचकर आप लगभग दो से पांच किमी. सुविधानुसार विभिन्न स्थानों से ट्रेक करके चोटी के शीर्ष में पहुँचते हैं जहाँ राजा विराट के किले के खंडहर आज भी मौजूद हैं!

किले के खंडहारों के माप के अनुसार यह किला जिसकी सबसे अंदरूनी लेयर लगभग सवा सौ हाथ के आस-पास वर्गाकार है वहीँ किले के शीर्ष भाग में ही एक कुंवा है जिसका माप लगभग पांच हाथ या नौ फिट वर्गाकार परिधि में है! इस किले की प्रमाणिकता के लिए मेरे द्वारा एक टुकडा पत्थर सोईल टेस्टिंग के लिए भेजा गया है जिस से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किले में बनाया गया यह कुंवा किस काल का है! बहरहाल कुंवे को बड़े बड़े पत्थरों से पाट दिया गया है! मेरे साथ वैराट गढ़ पहुंचे जौनसार बावर क्षेत्र के समाजसेवी इंद्र सिंह नेगी बताते हैं कि इस कुंवे को जानबूझकर पत्थरों से पाटा गया है क्योंकि अक्सर यहाँ जानवर आकर गिर जाता था जिसे निकालना बड़ा मुश्किल होता था! वहीँ जौनसार बावर के पहले साहित्यकार स्व. कृपा राम जोशी बताया करते थे कि उन्होंने बचपन में इस कुँवें में बेहद गहराई पर नीला पानी देखा था जो यमुना के जल के साथ साथ अपना रंग बदलता था और पत्थर फैंकने पर उसके डूबने की आवाज काफी देर तक निरंतर आती रहती थी!

उत्तराखंड सरकार के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज द्वारा भले ही जौनसार बावर के इस क्षेत्र को महाभारत सर्किट नाम दिया गया है और लाखामंडल को सर्किट का मुख्य केंद्र बिंदु माना है लेकिन अब तक पुरातत्व विभाग ने इस महत्वपूर्ण किले तक पहुँचने की जहमत नहीं उठाई जबकि इसके प्रमाण हर काल में मिलते रहे हैं! पहले यही किला महाभारत काल में पांडवों का गुप्तवास रहा फिर यह रजवाड़ो के समय हिमाचल के राजा व उत्तराखंड के राजाओं का एक अटूट दुर्ग रहा फिर गोरखा काल में बेहद चर्चित तब रहा जब नालापानी किले से भागकर गोरखा सेनापति बलबहादुर थापा ने यहाँ शरण ली थी लेकिन उनके अत्याचारों से तंग यहाँ के जनमानस की बहु-बेटियों से लेकर यहाँ के पुरुषों ने हाथ में तलवार लेकर जमकर मुकाबला करते हुए उन्हें खदेड़ा था!

आपको ज्ञात हो कि इसी किले के पास गौथान नामक स्थान है जहाँ राजा विराट की गौशाळा थी और शक के आधार पर दर्योधन के सैनिकों ने गाय लूटनी चाही थी जिन पर अर्जुन द्वारा खुरपका रोग उपजा दिया था और गाय ले जाने में वे सैनिक असमर्थ रहे! यहीं भीम ने कीचक नामक दैत्य का वध किया जिसके प्रत्यक्ष प्रमाण आज भी कट्टापत्थर नामक स्थान में दिखाई देते हैं और यहीं वह पेड़ भी है जहाँ पांडवों ने अपने धनुष बाण छुपाकर रखे थे!

कुछ लोगों का मानना है कि राजस्थान में राजा विराट का विराट नगर है ! इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं कि  विराटपुर या विराट नगर जयपुर राजस्थान में भी है लेकिन राजा विराट से जुडी हर गाथाएं यमुना नदी के आस-पास होने का संकेत करती हैं क्योंकि वह मत्स्य देश का सम्राट था! फिर मत्स्य नरेश का स्वाभाविक अर्थ हुआ जहाँ मछलियों की पैदावार ज्यादा हो! भला राजस्थान की मरू- भूमि में यह कैसे संभव है?  जौनसार बावर क्षेत्र में विराजमान विराट नगर (वैराट गढ़) जिसे स्थानीय भाषा में आज भी बैराट गढ़ या बैराट खाई के नाम से संबोधित किया गया है अपने खंडहरों से हमें आगाह करवाता रहता है कि हाँ महाभारत काल से मैं ही इतिहास  का गवाह हूँ.

इस किले से जुड़े सबसे प्रचलित लोक कथा जौनसार बावर के सुप्रसिद्ध लोक देवता महासू देवता से भी जुडी हुई है जिन्होंने इस किले में रहने वाले राक्षसी प्रवृति के राजा सामुशाही का वध बहुत ही विचित्र तरीके से किया था! सामुशाही  दैन्त्य के बारे में यहाँ प्रचलित है कि वह औरतों का स्तन पान करता था और जिस औरत का भी बच्चा जन्म लेता वह राजाज्ञा से उस औरत के स्थनों पर चमड़े का पट्टा लगवा देता ताकि उसका बच्चा उसका दूध न पी सके ऐसे में बच्चे मरने लगे वंश दर वंश मिटता देख इस क्षेत्र के चार चौन्तरू देवता के दरवार हनोल पहुंचे और देवता ने उनकी फ़रियाद सुनकर थैना गाँव पहुँचने के बाद सामुशाही दानव  के नाक में पेड़ उगाने शुरू कर दिए उसके पेट में सूअर के बच्चे जन्म लेने लगे! उसे उन्होंने बहेड कष्टप्रद मौत दी! ऐसा यहाँ की लोक गाथाओं जागरों में वर्णित है! उपरोक्त पर हेमा उनियाल ने जौनसार बावर रवाई जौनपुर (समाज, संस्कृति, वास्तुशिल्प एवम पर्यटन) पृष्ठ 64-65 व केदारखण्ड (गढ़वाल-धर्म, संस्कृति, वास्तुशिल्प एवम पर्यटन) के पृष्ठ 68 में भी वर्णित है।

(जौनसार बावर के समाजसेवी इंद्र सिंह नेगी)

सम्बन्धित विषय को पुख्ता करते कुछ लेखकों के शोध और केदारखंड में वर्णित क्षार का सार कुछ इस तरह है:-
१- महाभारत काल में मत्स्यदेशीय राजधानी मत्स्यराज विराट की राजधानी होने के कारण इसका नाम विराट नगर पडा. (विराटपर्व३०,९९,२३)!

२- पान्डवों ने बनवास के बाद एक वर्ष का अज्ञातवास यहीं काटा. (भारतवर्षीय ऐतिहासिक स्थल कोष डॉ. यशवंत कटोच पृष्ठ २४९)

३- कदाचित  मौर्य काल में भी मत्स्य देश राजधानी (वृ. कल्पसूभाष्य) अशोक की दो गौण शिला प्रज्ञापन यहाँ प्राप्त हुए इनमें एक बीजक-की-पहाड़ी पर, बीजक-की-पहाड़ी की दो वेदिकाओं पर ही बौध, पुरावशेष तथा निचली पर एक इष्टका स्तूप मिला जो कालसी क्षेत्र में है, एवं विराट गढ़ का सतही क्षेत्र कहलाता है.
देवलमित्रा के अनुसार यह स्तूप प्रदक्षीणा-पथ बनाते हुए दो वृत्ताकार भित्तियों से परिवेष्टित था! (वु.मा. १९७१ पृष्ठ ४२)

४- इस स्तूप को अशोक कालीन माना जाता है जो यमुना के बामांग में स्थित पहाड़ी तलहटी पर है , अशोक के चुनार वालुकाश्म के स्तम्भ के अंश तथा मौर्यकालीन ओपयुक्त छत्त भी यहाँ से प्राप्त हुई है.

इतिहास पुरातत्व पर: कनि, आ.स.रि.२, पृष्ठ २४६:६, १९७३, पृष्ठ ९१:२३, १८८९ पृष्ठ २९ साहनी द. रा. आर्क रेमेंस एंड एक्सकवंशन्स एट बैराट, जयपुर घोष, अ.एन्सा. ह.आ.२, पृष्ठ ४१-४२ में, बनर्जी, नी.र.इ.आ.-रि. १९६२-६३ में लेखकों द्वारा इसे जयपुर से ४१ मील दूर यानी ६६ किमी. दूर उत्तर में बाणगंगा पर स्थित बताया है!  लेकिन इनमें से अधिकतर का मत यह है कि बैराट नगर और विराट गढ़ जो मत्स्य नरेश की राजधानी व किला था वह यमुना के बामांग में उच्च शिखरों पर स्थित एक गढ़ था जो वर्तमान में खंडहारों में तब्दील हो गया है, और कालांतर में इसमें हिमाचल के राजा और गढ़वाल के राजा का समय-समय पर  रहा है!
बैराटगढ़ में बीर भड़ लोधी रिखोला जोकि गढ़तोडू भड भौं सिंह रिखोला (नेगी) का पुत्र था और पौड़ी गढ़वाल के बयेली गॉव (बदलपुर) का निवासी था, का भी काफी समय तक अधिकार रहा और यहीं उसने हिमाचल के राजा की पुत्री ज्योति मंगला से शादी कर भानु और मोती नामक दो पुत्रों को आश्रय दिया!

आपको बता दें कि वीर भड़ रिखोला ने गढ़ नरेश महिपत शाह १६३१-३५ के काल  में सिरमौर राज्य में कोहराम मचाकर न सिर्फ माल की दून का वह क्षेत्र हासिल किया बल्कि राज्य की सीमा हाटकोटि तक विस्तारित की!  उस दौरान दिल्ली में अकबर राजा थे कुमाऊ में ज्ञान चंद और सिरमौर में मौली चंद राजा हुआ करते थे!

गढ़ बैराट कुछ वर्षों तक यह गढ़वाल का अभिन्न हिस्सा रहा लेकिन पुन: यह सिरमौर नरेश के अधिपत्य में चला गया. इधर नजीबाबाद सीमा पर भी युद्ध चलता रहा और कुमाऊ का तत्कालीन राजा लक्ष्मी चंद हारता रहा. लेकिन गढ़वाल नरेश के सेनापति भौं सिंह रिखोला के आंधी तूफ़ान ने १६३१ फिर सिरमौर रियासत में कोहराम मचाया और फतह कर लौटते समय जब वह शेषधारा (नाई-त्युना) शायद वर्तमान में जिसे त्यूनी कहते हैं स्नान कर रहा था तब सिरमौर नरेश ने धोके से उनका सिर कलम कर दिया.

बाप की मौत का बदला लेने पहुन्चे बीर भड लोधी रिखोला ने सिरमौर रियासत को खंडहर में तब्दील कर वहां से कैलाबीर का नगाड़ा और बदरीनाथ की ध्वज पताका छीनकर वापस गढ़ नरेश को दे दी. कहते हैं इस बीर को भी गढ़वाल दरवार के मुस्सदियों ने धोके से मरवा लिया! कहते हैं लोधी रिखोला की माँ के श्राप के चलते ही तब से गढ़वाल में कोई वीर भड पैदा नहीं हुआ!

विभिन्न तर्कों के दृष्टिगत यह साबित तो होता ही है कि यह किला महाभारत काल से लेकर अब तक अपने अवशेषों के माध्यम से हजारों हजार साल का इतिहास दोहराता नजर आता है लेकिन इस पर जाने क्यों अब तक किसी इतिहासकार ने विस्तृत शोध नहीं किया और न ही पुरातत्व विभाग द्वारा कोई सर्वे ही प्रस्तुत किया गया है! उम्मीद है पर्यटन की दृष्टि से उत्तराखंड के लिए यह सबसे नजदीक का सौन्दर्ययुक्त पर्यटक स्थल बन सकता है जिस से न सिर्फ यहाँ पर्यटकों की आवाजाही बढ़ेगी अपितु रोजगार के स्वर्णिम अवसर भी स्थानीय लोगों को प्राप्त होंगे!

 

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