Saturday, July 27, 2024
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बद्रीनाथ नहीं बल्कि पांडूकेश्वर मंदिर में चढ़ाया था बादशाह अकबर ने घांड!

(मनोज इष्टवाल)

कई बार जब ऐतिहासिक जानकारियों पर बुद्धिमानों या विद्वानों के बीच मतान्तर आये तब चुप रहकर कोशिश यह करनी चाहिये कि हम साक्ष्यों के साथ ऐसे ऐतिहासिक तथ्यों पर प्रकाश डालें! विगत दिनों भी ऐसा ही कुछ हुआ जिसके बाद मुझे यह लेख लिखना पड़ा!

१- पांडुकेश्वर मंदिर २- ज्वालामुखी मंदिर ३- पांडूकेश्वर मंदिर ४- बादशाह अकबर ५- बादशाह अकबर द्वारा ज्वालामुखी में चढ़ाए गए छत्र

उत्तराखंड पूरे भारतबर्ष का एकमात्र ऐसा राज्य रहा है जहाँ मुगलों ने कभी राज नहीं किया और तो और इसे देवभूमि मानकर यहाँ के जजिया कर तक माफ़ कर दिए थे! अकबरनामा में एक प्रसंग के दौरान यह बात सामने आई कि उत्तराखंड में ऐसे पुरुष/राक्षस/योद्धा रहते हैं जो आसमान में उड़कर वार करते हैं, जिससे मुग़ल सेना में दहशत बनी रहती थी! दाराशिकोह के श्रीनगर दरबार में शरण लेने के पश्चात ही मुस्लिम समाज का गढ़वाल में आगमन माना जाता है और इसी दौर में बनवारी लाल तुंवर जैसे राजदरवारी कवि का भी श्रीनगर दरवार में आना बताया जाता है! औरंगजेब के काल में गढ़वाल पर तीन ओर से घेराबंदी हुई थी! कुमाऊं से बाजबहादुर चंद व सहारनपुर क्षेत्र से मुग़ल सेना तथा सिरमौर (हिमाचल) से सिरमौरी राजा की सेना ने आक्रमण किया था लेकिन महीनों तक घेराबंदी व युद्ध के बाद भी उसे बिशेष लाभ होने की जगह उसके कई लड़ाके मारे गए! यह युद्ध दो बार हुए! दूसरी बार माल की दून पर ही कब्जा कर पाए लेकिन मुग़ल सेना श्रीनगर नहीं चढ़ पाई! यह संक्षेप वृत्तांत है और इसमें सन संवत इत्यादि देना बेवजह लेख को विस्तृत करने जैसा है! मुख्य मुद्दा तो आईने अखबरी, उत्तराखंड के अभिलेख एवं मुद्रा (डॉ. शिब प्रसाद डबराल “चारण” पृष्ठ १३५), क्वाइंस ऑफ़ एनशियंट इंडिया इन ब्रिटिश म्यूजियम (एलन), अभिलेखों की प्रतिलिपियां (चक्रधर जोशी), भारत का इतिहास! दिल्ली सल्तनत! अकबर महान (श्रीवास्तव) इत्यादि दर्जनों पुस्तकों में वर्णित काल का है!

ज्वालामुखी मंदिर कांगड़ा व उसमें बादशाह अकबर द्वारा चढ़ाया गया छत्र

सर्वप्रथम हम बुघाणा जाति पर आते हैं जिनका उद्भव संवत 980 में गढवाल आगमन के बाद माना जाता है! गढ़वाली ब्राह्मणों की प्रमुख शाखा गंगाडी ब्राह्मणों में बहुगुणा जाति सम्वत 980 में गौड़ बंगाल से आई मूलतः अद्यागौड़ जाती थी। बुघाणी निवास के बाद ये मूलत: बहुगुणा कहलाये! इनके गाँव बुघाणी, बडोली, झाला, मुसोली, पोखरी इत्यादि बताये गए हैं जो श्रीनगर के आस-पास हैं, वर्तमान में इनकी शाखाएं सम्पूर्ण उत्तराखंड तक फ़ैल चुकी हैं! इन्हीं बुघाणा (बहुगुणा) जाति में एक पंडित प्रयाग देवाचार्य हुए जिनका विद्वतता में गढवाल नरेश सहजपाल (1548-80) तक बड़ा नाम हुआ करता था व ये तत्कालीन समय में श्रीनगर स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर के प्रधान महंत का दायित्व सम्भाले थे! बताया जाता है कि हर बर्ष की भांतिसम्राट अकबर के दूत श्रीनगर राज दरवार में बद्री केदारनाथ की भेंट देने आये थे और तब उन्होंने सम्राट अकबर के मन की पीड़ा को प्रकट किया था कि सम्राट पुत्र रत्न प्राप्ति को आकुल व्याकुल हैं! ऐसे में राजा सहसपाल द्वारा पंडित प्रयाग देवाचार्य बहुगुणा को दिल्ली दरवार भेजा व पंडित प्रयाग देवाचार्य ने सम्राट अकबर को आशीर्वाद देते हुए कहा कि आपको पुत्र रत्न प्राप्त होगा जिसकी प्राप्ति के बाद आपको भगवान बद्रीनाथ को घंटी (घांड) अर्पित करनी होगी!

आपको बता दें कि सम्राट अकबर को देवी दोष लगा था! जिसका ताजातरीन प्रमाण आज भी कांगड़ा (हिमाचल) के ज्वालामुखी मंदिर में मौजूद है! सम्राट अकबर को जब यह जानकारी मिली कि ज्वाला जी की जोत कभी नहीं बुझती तब उन्होंने इस बात का बड़ा मजाक उड़ाया व मुगल सोच के आधार पर इसे हिन्दुओं की बुत्तपरस्ती करार दिया! बताया गया है कि ज्वालामुखी मंदिर की देवी को अकबर ने अज़माने की कोशिश की थी। पहले उसने मुख्य ज्योति पर लोहे के तव्वे चढ़ाये ताकि ज्योति बुझ जाए लेकिन ऐसा नही हुआ और वो दीपक की ज्योति तव्वे को फाड़ कर बाहर आ गई।

अकबर के आदेश पर नहर का पानी ला कर भी इसे बुझाने की कोशिश की लेकिन फिर भी नही बुझी। इन सब के बाद अकबर को माता की शक्ति का एहसास हुआ और वह आगरा से कांगड़ा तक वह नंगे पैर आया। यही श्रद्धा को दिखाने के लिए उसने सोने का भारी छत्र चढ़ाया जो देखते ही देखते एक ऐसी धातु में बदल गया जिसे बता पाना सम्भव नहीं है! कोई उसे अष्टधातु तो कोई लोहे की धातु मानता है! कहते हैं देवी ने सम्राट अकबर के सपने में जाकर कहा कि जिस राजा को अपने पर इतना अभिमान हो उसके वंशज अब उसका राज सुख नहीं भोग सकते! अकबर ने दुनिया भर की दरगाहों में मस्तक टेका लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ! अंत में मुग़ल तांत्रिकों के सुझाव पर उन्होंने प्रतिबर्ष भगवान बदरीनाथ व केदारनाथ माँ गंगा यमुना को भेंट भेजनी शुरू की अंत में उन्हें राजा सहसपाल की बदौलत व पंडित प्रयागदेवाचार्य के आशीर्वाद से पुत्ररत्न प्राप्त हुआ! यह पुत्र उन्हें अपनी तीसरी रानी जोधा से प्राप्त हुआ!

अकबर  की सात पत्नियों मे रुकैक्या सुल्तान बेगम राजा की पहली पत्नी थी! इनका जन्म 1542 के करीब बताता जाता है। रुकैकया, अकबर  के पिता हुमायूँ के सबसे छोटे भाई हिन्दाल मिर्ज़ा की सुपुत्री थी। इनकी माता बेगम सुलतानम । सम्राट अकबर की सात पत्नियों में क्रमश:रुकय्या सुल्तान, सलीमा सुल्तान, जोधा, बीबी दौलत शाद, क़सीमा बानु, भक्करी बेगम, गौहर-उन-निस्सा थी!

पांडूकेश्वर मंदिर व बादशाह अकबर

बादशाह अकबर की तीसरी पत्नी जोधा जयपुर के राजपूत की देन है। जोधा, आमेर रियासत के राजा भारमल की वो सबसे बड़ी सुपुत्री थी। इनकी माता का नाम रानी चंपावती था। जोधा का जन्म सन 1542 में हुआ था। जोधा को हरका बाई, हीर कुंवर नाम से भी जाना जाता था। अकबर से शादी के बाद मुगल साम्राज्य मे  इनको मरियम-उज-जमानी के नाम से जानी गई। राजा की जिस बेगम को यह आदर मिलता था, इसकी संतान भविष्य में राजा का उत्तराधिकारी बनता था। अपनी पहली दो पत्नियों के निःसंतान रहने के बाद अकबर ने 6 फरबरी 1562 को राजस्थान के सांभर मे जोधा से विवाह रचाया। जोधा की पहली दो संताने हसन एवं हुसैन जन्म के कुछ महीनों बाद ही मर गये। जिसके कारण राजा को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी। परंतु 31 अगस्त 1569 में जोधा ने एक लड़के को जन्म दिया, जिसका नाम सलीम था। सलीम अकबर का प्रियतम पुत्र था। जो बाद में मुगल सल्तनत का राजा जहाँगीर के रूप में जाना गया। एक जोधा की मौत 19 मई 1623 को बताई जाती है।

कई इतिहासकारों का मानना है कि इसके बाद उन्होंने बद्रीनाथ धाम में बड़ा घांड चढ़ाया है, लेकिन इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता! हाँ हिन्दू धर्मानुसार पांच बर्ष की आयु में बालक का संस्कार यज्ञोपवित किया जाता है, ऐसे में महारानी जोधा ने उन्हें याद दिलाया कि आपको पंडित प्रयागदेवाचार्य का वह कौल/वचन याद रखना चाहिए जिसमें बद्रीनाथ को घांड भेंट करने की बात कही गयी थी! बताया जाता है कि सम्राट अकबर ने पूरी मन सुधि वचन से घांड भिजवाया लेकिन स्वयं उपस्थित नहीं हो पाए! कालगति ऐसी हुई कि घांड बद्रीनाथ नहीं ले जाया जा पाया और उसे पांडूकेश्वर मंदिर में ही चढ़ाया गया! आज भी पांडूकेश्वर मंदिर के घंटे पर फ़ारसी में एक लेख गुदा है:-

हिजरी ९८२/१५७३ ई.(वि.) ई.

साइतनामा दरमहैल जिलाले-इ-अल्लाह अदल अकबर बादशाह गाजी राशकुनानेद शुद फर्द मा विशव वा तारीख़ तेरा रोज सेसवां सन हिजरी ९८२ न अर बादशाही के दर दारा तलके अदरनु देहली वासद कुहरवान अवन फतत हनथी नदावन कर खयाल नाफ़नद्दा वा राश नराइनदास कारीगर इब्न खातमदास कारीगर!

(भावार्थ – श्रद्धापूर्वक अर्पित यह (घंटा) भगवान् की असीम कृपा के लिए धन्यवाद देने के उद्देश्य से दिल्ली निवासी कारीगर खातमदास के पुत्र नराइनदास द्वारा ईश्वर की छत्रछाया के समान अद्वितीय एवं धर्म पर अटल विश्वास रखने वाले अकबर बादशाह गाज़ी (धर्मयोद्धा) के शासन काल में हिजरी सन ९८२ के…मास? की तारीख १३ वृहस्पतिवार को चढ़ाया गया !



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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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