(मनोज इष्टवाल)
गोरखा सेना की हार के बाद, 21 अप्रैल 1815 को अंग्रेजों ने गढ़वाल क्षेत्र के पूर्वी, गढ़वाल का आधा हिस्सा, जो कि अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के पूर्व में स्थित है, जोकि बाद में, ‘ब्रिटिश गढ़वाल‘ और देहरादून के दून के रूप में जाना जाता है, पर अपना शासन स्थापित करने का निर्णय लिया ।
प्रारंभ में कुमाऊं और गढ़वाल के आयुक्त का मुख्यालय नैनीताल में ही था लेकिन बाद में गढ़वाल अलग हो गया और 1840 में सहायक आयुक्त के अंतर्गत पौड़ी जिले के रूप में स्थापित हुआ और उसका मुख्यालय पौड़ी में गठित किया गया। पौड़ी के प्रथम जिलाधिकारी वी ए स्टोवेल के 1 अक्टूबर 1908 में यहां पदभार ग्रहण किया था।
पौड़ी नाम के गांव के पास एक कस्बा है। यह जिला गढ़वाल का सुंदर मुकाम है। यह समुद्रपृष्ट से साढ़े चार हजार फीट की ऊंचाई पर है यहां की जलवायु अति उत्तम है और यहां से हिमालय पर्वत का दृश्य बड़ा ही सुनदर दिखाई देता है। अङ्गरेजी राज्य होने के थोड़े ही बर्ष के बाद यह स्थान बसाया गया था। यहां अधिकांश बस्ती सर्कारी कर्मचारियों की है। यहां जिलाधिपति (डिप्टी कमिश्नर) और हाकिम परगना की कचहरियां, खजाना, तहसील, थाना, जेलखाना, मुहाफिजखाना, डाकखाना, तारघर इत्यादि सब सर्कारी दफ्तर हैं जिले का सिविल सर्जन, इञ्जिनियर और जंगलात के डिमीजनल फारेस्ट औफिसर और उनके दफ्तर भी यहीं हैं। यहां डिस्ट्रक्ट वोर्ड का दफ्तर और उसका एक डाक बंगला, धर्मशाला और एक औषधालय भी है। एक दफ्तर कुली एजन्सी का भी है।
पिछले समय अर्थात् गोर्खा की अमलदारी में यहां (इस प्रान्त में) अन्य कई जुल्मों के साथ 2 प्रजा से जबरदस्ती कुलीबेगार लेने की भी एक प्रथा चल पड़ी थी। अङ्गरेजी सरकार का राज्य होने पर और जुल्म तो बन्द हो गये थे पर यह घृणित प्रथा चलती ही रही। प्रजा की ओर से सरकार की सेवा में कितने ही निवेदन पत्र इस प्रथा को रोकने के पेश होने पर भी सरकारी हाकिमों की ओर से यह उत्तर आता रहा कि विला कुली बेगार के सरकारी काम चल ही नहीं सकता। लोग इस जुल्मी प्रथा से इतने तंग आ गये थे कि इससे बचने को उनसे जो कुछ भी मांगा जाता वे देने को तय्यार थे। यह देखकर गढ़वाली नेताओं ने लोगों से वार्षिक चन्दा लेकर ‘कुली एजन्सी’ नामकी एक संस्था स्थापित की और यह संस्था जिले के एक हिस्से में लोगों के बदले बेगार और वर्दायश देने लगी। इस पर रव्यत का दो लाख से अधिक रुपया खर्च हुआ पर इससे प्रकृत उपकार कुछ न हुआ तब भी बर्दायश का कष्ट बना ही रहा। बेगार बर्दायश के लालची हाकिम एजन्सी पड़ाव से एक आध मील आगे पीछे डेरा डालकर लोगों का बर्दायस में तलब कर लिया करते थे। सन् 1921 में जब देश में असहयोग आन्दोलन हो रहा था। कुमाऊं प्रान्त में लोगों ने वर्दायश से इन्कार कर दिया। तब गवर्नमेंट भी प्रजा के इस दुःख को देख न सकी उसने एकदम इस घृणित प्रथा का अंत कर दिया। और लोगों के चन्दे से चलती हुई कुली एजन्सी नाम की संस्था को आप ले लिया। अब सर्कार इस कुली ऐजन्सी को चलाने के लिये रुपया देती है। कोटद्वार से जोशीमठ्ठ तक प्रत्येक मंजिल पर एजन्सी की चौकियां हैं जहां सर्कारी कर्मचारियों के अतिरिक्त अन्य मुसाफिरों को भी पहिले से सूचना देने पर कुली खच्चर इत्यादि मिल सकते हैं इसका प्रबन्ध डिप्टीकमिश्नर साहब के अधिकार में है। जो कोई मुसाफिर इस जिले में इस एजन्सी से कुली चाहें वे डिप्टी कमिश्नर साहब को लिख सकते हैं। गवर्नमेंट का यह कार्य बड़ा ही प्रसंशनीय है। गढ़वाली जनता इससे बड़ी संतुष्ट हुई है।