(ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!)
आखिरकार एक साल के इन्तजार के बाद एक बार फिर बंड पट्टी में नंदा की वार्षिक लोकजात को लेकर तैयारी शुरू हो चुकी है। 23 अगस्त को कुरूड से चली नंदा की छंतोली 2 सितम्बर को बंड पट्टी के किरूली गांव के भूमियाल मंदिर में पहुंचेगी। जबकि बंड पट्टी के अन्य गांवों की छंतोली भी इसी दिन रात्रि विश्राम के लिए यहाँ आयेंगी। 3 सितम्बर को नंदा की छंतोली सहित अन्य छंतोली यहाँ से प्रस्थान कर गौणा गांव में रात्रि विश्राम करेगी। 4 सितम्बर को गौणा से प्रस्थान कर रात्रि विश्राम पंचगंगा (रामणी) पहुंचेगी। 5 सितम्बर को छंतोली नंदासप्तमी के अवसर पर उच्च हिमालय में स्थित नरेला बुग्याल में पहुंचकर तर्पण और पूजा अर्चना के उपरांत लोकजात वापस रात्रि विश्राम को भनाई- बौंधार लौट आयेगी। और 6 सितम्बर बंड भूमियाल के पौराणिक मंदिर में पहुंचकर सब छंतोली अपने अपने गंतव्य को प्रस्थान करेंगी।
नंदा-बंड भूमियाल की नरेला बुग्याल लोकजात यात्रा आध्यात्म, रोमांच से भरी पड़ी है।
नरेला बुग्याल की लोकजात यात्रा में कुरूड से चली कुरूड नंदा की रिंगाल की छंतोली बंड पट्टी के कौडिया, सिरकोट, दिगोली, लुंहा, महरगांव, बाटुला, मायापुर, गडोरा, अगथल्ला, रैतोली, नौरख, पीपलकोटी, सल्ला, कम्यार होते हुये बंड भूमियाल की थाती किरूली गांव पहुंचती है। सैकड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में नंदा के जयकारों और जागरों के साथ बंड भूमियाल का थान थिरक उठता है और इस दौरान चांचणी, झुमेलो की सुमधुर लहरियों से अलौकिक हो उठता है बंड पट्टी में मां नंदा का लोक। रात भर बंड भूमियाल की थाती में लोकोत्सव का माहौल रहता है। अगले दिन बंड पट्टी के सैकड़ों ग्रामीणों मां नंदा को रोते विलखते विदा करते हैं, साथ ही मां नंदा को समौण के रूप में खाजा, चूडा, बिंदी, चूडी, सहित ककड़ी, मुंगरी भेंट करते हैं। महिलाएँ नंदा के पौराणिक जागर गाकर नंदा को विदा करती हैं। जिसके बाद कुरूड नंदा की छंतोली, बंड भूमियाल की छंतोली की अगुवाई में गेदाणू देवता की छंतोली सहित विभिन्न गांवों की छंतोली किरूली गांव के बंड भूमियाल मंदिर से पंछूला नामक स्थान पर कुणजाख देवता से आज्ञा लेकर विनाकधार, बौंधार, भनाई होते हुये अगले पड़ाव गौणा गाँव के लिए प्रस्थान करती है। गौणा गाँव से अगले दिन छंतोली सुरम्य और आनंदित कर देने वाले तडाग ताल(मणीभद्र सरोवर), गौणा डांडा, रामणी बुग्याल, चेचनिया विनायक होते हुये रात्रि विश्राम को पंचगंगा पहुंचती है। जिसके बाद अगले दिन छंतोली पंचगंगा से नरेला बुग्याल पहुंचती है। नरेला बुग्याल में नंदा सप्तमी /अष्टमी के दिन छंतोली की पूजा अर्चना कर, श्रद्धालु अपने साथ लाये नंदा को समौण के रूप में खाजा, चूडा, बिंदी, चूडी, सहित ककड़ी, मुंगरी अर्पित करते हैं। इस दौरान सामने दिखाई दे रहे त्रिशुली और नंदा घुंघुटी पर्वत की पूजा भी करते हैं। और नंदा को कैलाश की ओर विदा कर लोकजात वापसी का रास्ता पकडती है।
आपको बताते चलें कि नंदा देवी राजजात यात्रा से भी ज्यादा विस्तारित है नंदा की वार्षिक लोकजात। जिसमे लोकजात नंदा के सिद्धपीठ कुरुड मंदिर से शुरू होती है। यहाँ से प्रस्थान कर राजराजेश्वरी बधाण की नंदा डोली बेदनी बुग्याल में, कुरुड दशोली की नंदा डोली बालपाटा बुग्याल और कुरुड नंदा- बंड भुमियाल की छ्न्तोली नरेला बुग्याल में नंदा सप्तमी/ अष्टमी के दिन पूजा अर्चना कर, नंदा को समौण भेंट कर लोकजात संपन्न होती है।