Wednesday, October 16, 2024
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नयार घाटी में पाँव पसारता पर्यटन व नयार घाटी में टहलते ये पागल!

(मनोज इष्टवाल)

शायद यह आज से ठीक एक साल पहले की बात है! अक्टूबर या नवम्बर 2018 ..! मुझे मेरे मित्र बिजनेशमैन व पलायन एक चिंतन के संरक्षक रतन सिंह असवाल ने मेरे फाइव इलेमेंट्स पर चुटकी लेने पर यह जबाब दिया था कि “पंडा जी किस दुनिया में हो? अब मैंने ठेठ गाँव को अपनाना शुरू कर दिया है! मैं अब गंगा घाटी की जगह नयार घाटी पहुँच गया हूँ जहाँ काफी मशक्कत के बाद कुछ बंजर जमीन की लीज करवाई है और अब देखना कि वहां कैसे नयार घाटी पर्यटन और पर्यटकों से सरसब्ज होगी व कैसे पलायनवादी वापस लौटेंगे!

मैं भौंचक था सोचा कहीं गलती से कभी मैंने वह चर्चा किसी दिन इस व्यक्ति के आगे तो नहीं कर दी थी जो प्रोपोजल लेकर पैग्लाइडिंग एक्सपर्ट मनीष जोशी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के राईट हैंड कहे जाने वाले डॉ. कैलाश जोशी के साथ जब मार्च 2017 में पर्यटन मंत्री से मिले थे! क्योंकि वह मुलाक़ात मैंने ही करवाई थी व जो प्रोपोजल मनीष जोशी का था वह सिर्फ मुझे पता था ! मैं सोच में पढ़ गया कि व्यक्ति जो गंगा नदी के खूबसूरत तट पर ऋषिकेश बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 58 पर ऋषिकेश से करीब 40 किमी. आगे सिंगटाली पुल पार खूबसूरत सिल्वर सैंड (चमकीली बालुई मिटटी) के बीच पर शानदार टेंट लगाकर पर्यटकों का मन मोहता हो व उन्हें रिवर राफ्टिंग, रॉक क्लाइम्बिंग सहित विभिन्न रुचिकर पर्यटन से जोड़कर लाखों कमा रहा है उसे अब अचानक ऐसी क्या आन पड़ी कि वह फलते-फूलते व्यवसाय को छोड़ नयार घाटी के बिलखेत-बांघाट के उन बंजरों को आबाद करने निकल चुका है जिन्हें लोग एक दशक पहले यूँहीं वीरान छोड़ चुके हैं!

फिर 3 माह बाद पत्रकार मित्र अजय रावत व गणेश काला की एक पोस्ट देखता हूँ जहाँ ये लोग बंजर जमीन को खोदकर वहां अपने सपनों की खेती बोने का काम कर रहे हैं! यानि ठेठ सुमित्रानन्दन पन्त की उस कविता की तरह:-

मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे,
सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे,
रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी
और फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूँगा!

यह बेहद रुचिकर लगा तो गणेश काला जी को फोन किया पूछा- कहाँ हो भाई और क्या चल रहा है! बोले- इष्टवाल जी, अभी अपने गोल्डन महासीर कैंप सीला बांघाट में हैं! कुछ राष्ट्रीय स्वयं सेवक दल के छात्र आये हैं जिन्हें खेती के फंडे समझा रहे हैं! मेरे मुंह से निकला- गोल्डन महासीर कैंप? तो पीछे से आवाज गूंजी – अरे पंडा जी, नमस्कार..! अजय बुनू छऊँ! कन तुम थैंs पता नीछ कि ठाकुर साबन यख काम शुरू कर्याली! कना मित्र छवा भारे! (पंडित जी नमस्कार, अजय बोल रहा हूँ! क्या आपको पता नहीं है कि ठाकुर साहब ने यहाँ काम शुरू कर लिया है ! कैसे मित्र हो यार)!

समझते देर नहीं लगी कि ये ठाकुर साहब यानि रतन असवाल हुए! पृष्ठभूमि में गया तो पाया यहाँ तो पलायन एक चिंतन के कुछ योधा युद्धस्तर पर बंजर खेतों को प्लावित करने की धारणा से उतरे हुए हैं! उत्सुकता बढ़ी तो अपने स्थानीय सम्पर्क खंखाले! पत्रकारिता का यह कीड़ा ही कहिये कि जब काटता है तो जल्दी दर्द खत्म नहीं होता क्योंकि बिना प्रमाणों के खबर बेजान जो लगती है! दो तीन लोगों को फोन किया तो निराशा ही हाथ लगी! सब कहते ! नहीं जी हमें पता नहीं! हाँ चमोलीसैण में दिग्मोहन नेगी की कृपा से अस्पताल बना है उसी के कारण बांघाट की रौनक बढ़ी है! आखिरकार एक सम्पर्क ऐसा मिल ही गया जिसने बताया- हां इष्टवाल जी, कुछ लोग सीला गाँव के शमशान घाट के करीब के बंजरों को खोदकर उसे उपजाऊ बनाने की कोशिश करते दिख तो रहे हैं! नयार घाटी में ये पागल कुछ समय से टहलते नजर आ रहे हैं।

मैं बोला- पागल? हंसते हुए जबाब मिला- अरे भई, मजाक कर रहा हूँ! और अगर पागल कह भी रहा हूँ तो हर्ज क्या है। अपनी-अपनी गाड़ियों में आ रहे हैं। बेल्चा, फावड़ा उठाकर..! अब न बोलूं तो क्या बोलूं ! जिन खेतों को गाँव वालों ने बर्षों पहले छोड़ दिया उस पर अब ऐसा क्या उगा लेंगे ये लोग..घुंईया! जिसे इतने बर्षों में ग्रामीण नहीं उगा सके! मैंने पूछा कौन हैं ये लोग! बोले- सीला का कृष्णा काला, काला होटल सतपुली का पत्रकार गणेश काला, एक पौड़ी से आता है कोई पत्रकार अनिल बहुगुणा, एक बनेख-घंडियाल का पत्रकार अजय रावत व एक बड़ी सी गाडी लेकर आता है पाटीसैण में जो मिर्चोड़ा के डॉ. अबदयाल जी थे उनका लडका रतन असवाल!

मेरे मुंह से निकला-ओहो यहाँ भी फाइव एलिमेंटस! वह अपनी रौs में ही बोले- शायद बीडी का कस लगाने के लिए थोडा रुके थे! अज्जी, जो कलम चलाकर पेट पाल रहे हों क्या उनके वश में है सबल, गैंती चलाना! तभी तो कह रहा हूँ कि कुछ महीनों से नयार घाटी में पागल घूम रहे हैं! सुना है वे यहाँ पर्यटन को बढ़ावा देंगे! फिर खिलखिला कर हंस पड़े। बोले- पर्यटक भला इस खड्डे में क्यों आयेगा! जहाँ न कोई होटल ही ढंग का न रहने ठहरने की ठीक-ठाक व्यवस्था! और तो और वहां तक पहुँचने के लिए एक किमी. पैदल भला कौन पर्यटक जाएगा! झूठी बात..! यहाँ के लोग तो उन पर खूब चटकारे ले रहे हैं व वहां काम करने वाली लेबर से पूछ रहे हैं कि हाँ जी, क्या उगा रहे हो सोना..! फिर क्षणिक आराम शायद बीडी का सुट्टा लगाते हुए बोले- अब उनकी देखा-देखी में एक सीला के मालदार ने भी उन्हीं के बगल में कैम्प लगा दिया है! देखते हैं वे कब तक उस पर काम करते हैं!

मैंने उनका धन्यवाद किया व मन ही मन बोला- ये टीम अपने लिए न सही बल्कि इस घाटी के लिए सोना नहीं हीरे उगाने की खेती करेगी क्योंकि यह पक्का लम्बे प्लान के साथ इस बलुवी मिटटी में उतरे हैं! फिर वह दिन भी आया जब मैं इस कैंप में पहुंचा ! वहां जाकर देखा जगह -जगह टेंट लगाकर इसे इको टूरिज्म के ढर्रे में ढाला जा रहा है! नदी के बिलकुल छोर पर बसे इस महासीर कैम्प में अब खेत जोतने की मशीनें आ गयी हैं! मैदानी भूभाग के हिसाब से यहाँ वातानुकूलित झोपड़ियां तैयार हो रही हैं! यह नदी का ऐसा छोर है जहाँ नयार नदी का पानी अपने समतल आकार में कुछ पल के लिए बिश्राम करता दिखाई देता है! अर्थात यहाँ तैराकी के लिए मुफीद स्थान है! वाइल्ड लाइफ इसलिए प्रचुर मात्रा में है क्योंकि चारों ओर जंगल ही जंगल है जहाँ घुर्रल, काखड, मोर, चीता, बाघ, हिरन, खरगोश, बारासिंघा, सेई सहित दर्जनों किस्म के जानवर व सर्जनों प्रजाति के पक्षी विचरण करते हैं! कभी कोयल की कुहू-कुहू तो कभी मोर की रम्भाहट हृदय को शुकून देती है! यहाँ प्रदुषण का कहीं नाम नहीं!

अब सम्पूर्ण योजना समझ में आते देर नहीं लगी! मैं समझ गया कि रतन असवाल का फाइव एलिमेंट्स अब गोल्डन महासीर के रूप में कैसे तब्दील हुआ यह व्यक्ति पक्का यहाँ से लेकर द्वारीखाल तक पुराना ढाकर रूट ट्रेकिंग के लिए सरसब्ज करेगा व ढाकर मंडी के पहले बिश्राम स्थल बांघाट में फिर से चकाचौंध लाएगा चाहे उसे बर्षों क्यों न लग जाएँ क्योंकि उसके साथ काम करने वाली टीम पक्का इसे फलीभूत करेगी चाहे कितनी भी मुसीबतें क्यों न आ जाएँ!

कहाँ इसकी प्लानिंग के लिए मुझे लग रहा था कि बर्षों लगेंगे और कहाँ एक साल भी पूरा नहीं हुआ व पर्यटन विभाग व मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार द्वारा पूरी नयार घाटी को पर्यटन से जोड़कर इसे अमलीजामा पहना दिया गया! कल मन हुआ फिर से उस व्यक्ति को पूछने का कि अब ये पागल क्या कर रहे हैं? वह बोला- यार ये तो इस घाटी के लिए पायनियर निकले! बस मेरे होंठ मुस्करा दिए और मन प्रफुलित हो उठा!

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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