Tuesday, October 8, 2024
Homeलोक कला-संस्कृतिझांकर सेम ...! कहीं शिब का किरात अवतार तो नहीं..!  देवदार के पेड़...

झांकर सेम …! कहीं शिब का किरात अवतार तो नहीं..!  देवदार के पेड़ से खून की धार !

(मनोज इष्टवाल)
प्रश्न बड़ा है और हल उतना ही जटिल ? क्योंकि जनपद अल्मोड़ा के जागेश्वर क्षेत्र में अवस्थित झांकर सेम को शुद्ध शाकाहारी माना गया है. जबकि इसी की तलहटी में शिब जाग नाथ या जागेश्वर के रूप में अवतरित हैं और शमशानी कहलाये. 
महाभारत काल के एक प्रसंग के अनुसार जब धनुर्धर अर्जुन को यह अभिमान हो गया था कि पूरे विश्व में उनसे बड़ा कोई धनुर्धर नहीं हुआ है तब इन्ही हिमालयी क्षेत्र में शिब ने अर्जुन का वह वहम तोड़ा था. एक सूअर का पीछा करते करते अर्जुन ने जब उस पर तीर छोड़ा ऐन उनसे पहले उस पर कोई और तीर आकर लग गया सामने एक जंगली धनुर्धर को देखकर अर्जुन ने कहा पहले मेरे तीर से यह मारा गया है. उस धनुर्धर और अर्जुन में बहस हुई धनुष कमान उठे और तीरों का युद्ध प्रारम्भ हुआ अर्जुन ने देखा यह योद्धा उसके हर तीर को काट दे रहा है अवश्य ही यह कोई सिद्ध पुरुष है अंत में किरात के भेष में युद्ध लड़ रहे योद्धा से अर्जुन ने क्षमा मांगकर अनुनय की कि वे अपना असली परिचय दें तब किरात से शिब अपने रूप में आये और उन्होंने अर्जुन से कहा कि सर्वोपरि कहकर अभिमान ही सबसे बड़ा शत्रु है निशंकोच तुम श्रेष्ट हो लेकिन अहम के कारण तुम अपना ओज खो रहे हो.


कहते हैं जिस भू-भाग में यह युद्ध हुआ वह हिमालयी क्षेत्र गढ़वाल व नेपाल के मध्य का क्षेत्र है व किरात के अनुयायी उसके वंशज जिनमें निम्बू, पुन, खम्बु इत्यादि जातियां प्रमुख हैं. यह क्षेत्र तिब्बत, नेपाल व भारत का सीमावर्ती क्षेत्र हुआ जो आखेट का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता रहा है. 
यहीं गोल्जू की माता का गबलादेश हुआ जहाँ उनके पिता राज्य करते थे जिसका सीधा अर्थ हुआ कि उनकी माँ किरात वंशज हुई और शिब को वह अपना भाई समझती थी. लेकिन प्रश्न यह भी उठता है कि शिब और काली के पौराणिक सम्बन्ध क्या था. अगर शिब जागेश्वर या झांकर सेम में गोल्जू के मामा हैं तब काली शिब की बहन कैसे ? 


इतिहास काल के गर्भ में है जिसे आज भी खंगालने की आवश्यकता है और ग्रन्थ- पुराणों को पढने की भी. मुझे नहीं लगता कि गोल्जू देवता की माँ काली, काली अवतार है. क्योंकि गोल्जू देवता की माँ अद्वितीय सौन्दर्य की धनि थी. काली अवतार माँ का विकराल रूप है. 
झांकर सेम के अवतरण के बारे में बताते हैं कि देवदारु के इस मनोहर जंगल में वे एक देवदार वृक्ष के नीचे लिंग रूप में बेहद सात्विक स्वरूप में अवस्थित हुए . उनकी पहचान पास के ही गॉव की घास लकड़ी काटने वाली महिलाओं ने की क्योंकि जब कुछ महिलाएं लकड़ी लेने जंगल आई थी तब आपस में बात करते – करते एक महिला अपनी दरांती से देवदार के उस पेड़ पर हलके हलके दरांती की नोक के प्रहार कर रही थी देखते ही देखते देवदार के पेड़ से खून की धार फूट पड़ी महिलाएं घबरा गयी और यह सारा वृत्तांत गॉव जाकर सुनाया. कहते हैं ग्रामीणों ने यहाँ पहुंचकर देखा कि वही खून अब दूध की धार में बदलकर एक लिंग में समा रहा है. अर्थात इसे झांकर= घनघोर सेम= दलदल का नाम देकर इसकी शिब रूप में पूजा होने लगी.
मंदिर के पुजारी का कहना है कि जब जागेश्वर मंदिर का निर्माण हो रहा था तब दिन भर मंदिर जितना निर्मित होता रात को आकर राक्षस उसे उजाड़ देते. ऐसे में उन्हें भ्रमित करने के लिए झांकर सेम के बाहर बकरे की बलि दी जाने लगी तब से जागेश्वर मंदिर निर्माण में कोई व्यवधान नहीं आया. 


झांकर सेम में आपकी मन मुराद पूरी होती हैं यहाँ शिब बेहद शांत स्वरुप में लिंग के रूप में विराजमान हैं. वर्तमान में वह देवदार वृक्ष सूख गया है जिससे दूध निकलता था कहा जाता है कि एक साधू द्वारा उस दूध का आजमन करने की कोशिश की गयी जिसके फलस्वरूप ऐसा हुआ. पूर्व में इस लिंग पर मक्खन लगाया जाता था अब घी जिसे चोपड़ कहते हैं उसे लगाया जा रहा है.
जागेश्वर, झांकर सेम, गंगनाथ व गोरखनाथ सभी को गोल्जू देवता से जोड़कर देखा गया है और ये सभी उनके मामा हुए फिर यह कहना कि गोल्जू देवता कत्युरी यानि सूर्यवंशी हैं संभव नहीं है. क्योंकि उपर्युक्त सभी देवों के वंश का विवरण शास्त्र सम्मत ही ढूंढा जा सकता है. गोल्जू को राजा भी कहा गया है और सेनापति भी ! जबकि गोल्जू ने गुरु गोरखनाथ के सानिध्य में 12 बर्ष की अवस्था में गोरिया या गोरिल के नाम से जोशीमठ के नाथ सम्प्रदाय में दीक्षा ली. और वे कनफड़े नाथ भी कहलाये जिन्हें कहीं बटुकनाथ कहा गया है तो कहीं कन्डोलिया, कहीं ग्वल तो कहीं ग्वाला, कहीं गोरला ! गोल्जू पर आज भी शोध की आवश्यकता है. यह कहा जा सकता है कि न्यायप्रिय गोल्जू कत्युरी या चंद वंशजों के समय न्याय गुरु रहे जिन्होंने तलवार भी उठाई रण भी जीते व न्याय प्रिय होने से देवता स्वरुप आज भी पूजे जाते हैं. उनका जन्म कब हुआ इसका कोई आदि है न अंत ! सम्भवत: ये कृष्ण अवतारी हुए हों क्योंकि इनके हर नाम से यदुवंशी ग्वालाओं का स्वरूप उजागर होता है. शिव और यदुवंश का कभी कोई जुड़ाव रहा है यह कहना बेहद मुश्किल सा जान पड़ता है. आज भी इतिहास के ऐसे कई गूढ़ रहस्य शून्य हैं जिन पर शोध करना अति आवश्यक है.

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES