(मनोज इष्टवाल)
पलायन एक चिंतन टीम अपनी जड़ों में लौटने के लिए उन सभी प्रयासों पर कार्य कर रही है जो हमारे लोक समाज के हिस्से रहे हैं। जड़ों से जोड़ने व जुड़ने के लिए कुछ युवाओं की मेहनत नयारघाटी में हरियाली लौटाने का भरसक प्रयास कर रही है।
पौड़ी जिले के विकास खंड द्वारीखाल के सीला गांव में पलायन एक चिंतन टीम आजीविका उन्नयन कार्यक्रम को फलीभूत कर न सिर्फ यहाँ बंजर पड़े खेतों में फसल बो रही है बल्कि इस घाटी को यूको टूरिज्म के हिसाब से भी विकसित कर ग्रामीणों में नई सोच पैदा कर रही है।हाल ही में बाइकर्स टीम द्वारा इन्हीं के गोल्डन महाशीर कैम्प का भ्रमण कर यहां की आवोहवा का खूब लुत्फ उठाया गया।
टीम के सदस्यों ने अपनी परम्पराओं से जुड़ते हुए उत्तराखण्डी समाज के परंपरागत हुक्के को प्रचलन में लाकर नर्यूळ हुक्के में हैंड मेड तम्बाकू भरकर ग्रामीण आंचलों में नशे को ना का संदेश देने का प्रयास किया है।
टीम के गणेश काला व राकेश बिजल्वाण बताते हैं कि मैदानी भूभागों में हुक्का बार में क्या परोसा जाता है वे नहीं जानते लेकिन उत्तराखण्ड़ की संस्कृति में ब्रिटिश काल से पूर्व से ही हुक्का आतिथ्य सत्कार का माध्यम रहा। अंग्रेज चाय प्रचलन में लाये तो तब चाय को नशे के रूप में देखा गया। आज अतिथि सत्कार चाय से होता है हुक्का गायब हो गया।
उन्होंने कहा कि हुक्के पर यूँ तो हमारे समाज में कई लोक गीत प्रचलित हैं लेकिन इन सब में एक सन्देश होता था। एक गीत में तमाखू पेजा ब्वारी तमाखू पेजा के माध्यम से भी समाज में जन चेतना का सन्देश देने की कोशिश की गई है।
इन दोनों का कहना है कि कृपया नशे से दूरियां रखें इससे समाज का कभी भला नहीं हुआ है। हुक्का गुडगुड़ाना गलत नहीं है लेकिन हुक्के के नाम पर उसमें तरह तरह के नशे का प्रयोग करना बेहद खतरनाक है इसलिए हुक्के के नाम पर पंजाब से लेकर उत्तराखण्ड तक धुंवे की शक्ल के नशे का विरोध करें ताकि हमारे समाज को यह नशा दूषित न करें