Saturday, July 27, 2024
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गहराया रूपकुण्ड झील का रहस्य ! — वैज्ञानिकों का दावा अलग अलग समुदाय के हैं रूपकुण्ड में मौजूद नरकंकाल, 1000 साल के अंतराल में घटित हुयी दो घटनाएं, ‘नेचर कम्यूनिकेशन्स’ नाम के जर्नल में हुआ शोध प्रकाशित…।

(ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!)

देश ही नहीं विदेशी पर्यटकों के मध्य रहस्यमयी रूपकुंड में मौजूद हजारो नरकंकालो का रहस्य आज भी अबूझ पहेली बना हुआ है। अभी तक यहाँ मौजूद नरकंकालो की जानकारी हमें नंदा के लोकगीतों और जागरों में ही मिलती है। लेकिन अब एक शोध के बाद वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल का कहना है कि उत्तराखंड की रहस्यमयी रूपकुंड झील में मौजूद नरकंकाल अलग अलग समुदाय के हैं। जो एक हजार साल के अंतराल में कम से कम दो घटनाओं में मारे गए थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि इस स्थान के इतिहास की जितनी कल्पना की गई थी वह उससे भी जटिल है। शोधकर्ताओं का मानना है कि सात से 10 शताब्दी के बीच भारतीय मूल के लोग अलग-अलग घटनाओं में रूपकुंड में मारे गए। यह शोध ‘नेचर कम्यूनिकेशन्स’ नाम के जर्नल में मंगलवार को प्रकाशित हुआ है।

हैदराबाद के सेंटर फॉर सेल्युलर ऐंड मॉलिक्युलर बायॉलजी के वैज्ञानिकों ने इन कंकालों से डीएनए लेकर विश्लेषण किया। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के साथ मिलकर हैदराबाद के सेंटर फॉर सेल्युलर ऐंड मॉलिक्युलर बायॉलजी के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि ये कंकाल करीब 1000 साल के अंतराल में दो घटनाओं के दौरान हादसों का शिकार हुए तीन अलग-अलग जेनेटिक ग्रुप्स के हैं। डीएनए अनैलेसिस और दूसरे बायोमॉलिक्यूलर तरीकों से यह पता लगाया है कि वहां मिले मानव अवशेष भारतीय, मेडिटरेनियन और दक्षिणपूर्व एशिया के हैं। इसके अलावा इनके रेडियोकार्बन डेटिंग से पता चला कि सारे कंकाल एक ही समय के नहीं हैं, जैसा कि पहले समझा जाता था। इस शोध के बाद ये रहस्य ओर गहरा गया है कि ये लोग इतनी दूर से इतनी ऊँचाई पर रूपकुंड झील क्यों आए थे और उनकी मौत कैसे हुई—-???
https://www.nature.com/articles/s41467-019-11357-9

— यहाँ स्थित है रहस्यमयी रूपकुण्ड!

गौरतलब है कि सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाक मे लगभग 5029 मीटर (16499 फीट) की ऊंचाई पर हिमालय में स्थित है रहस्यमयी रूपकुंड। ऐतिहासिक नंदादेवी राजजात यात्रा मार्ग पर ज्यूंरागौली से पहले मौजूद है ‘रूपकुंड। रूपकुंड झील त्रिशूली शिखर (२४००० फीट) की गोद में ज्यूंरागली पहाडी के नीचे १५० फीट ब्यास एवं ५०० फीट की परिधि में अंडाकार आकार में फैली स्वच्छ एवं शांत मनोहारी झील है। इससे रूपगंगा जलधारा निकलती है। इस कुंड के आसपास हजारों मानव अस्थियां आज भी अव्यवस्थित है। ये नरकंकाल आज भी लोगों के मध्य रहस्य का विषय बना हुआ है कि आखिरकार ये मानव अस्थियां है किसकी –??

— लोकगीतों और जागरो के जरिये भी मिलती है रहस्यमयी रूपकुण्ड झील के बारे में जानकारी!

लेखक :- संजय चौहान

नंदा के लोकगीतो, जागरो और जनश्रुतियों के अनुसार माना जाता है कि एक बार नंदादेवी के दोष के कारण कन्नौज के राजा यशोधवल के राज्य में भयंकर अकाल सूखा तथा अनेक प्राकृतिक प्रकोप होने लगे जिससे भयभीत होकर राजा यशोधवल ने नंदादेवी की मनौती की और गढवाल हिमालय में नंदा देवी राजजात हेतु सदल-बल प्रस्थान किया। गढवाल हिमालय के इस पावन क्षेत्र की धार्मिक यात्रा के नियमों एवं मर्यादाओं की राजमद में पालन न करते हुए घोर उपेक्षा की। राजा अपनी गर्भवती रानी व दास-दासियों सहित तमाम लश्कर दल के साथ त्रिशूली पर्वत होते हुए नंदादेवी यात्रा मार्ग पर स्थित रूपकुंड में पंहुचे। नंदादेवी के दोष के परिणामस्वरुप उस क्षेत्र में अचानक भयंकर वर्षा व ओलावृष्टि हो गई और राजा यशोधवल सपरिवार आदि सभी यात्री दल उस बर्फानी तूफान में फंस गये व दबकर मर गये। मिले अवशेषों में रिंगाल की छंतोली और डोली के अवशेष, हुडका के अवशेष, चमडे की चप्पल मिली। वहीं कुछ चूड़ियां और गहने भी मिले जिससे पता चलता है कि समूह में महिलाएं भी मौजूद थीं। रूपकुंड में मौजूद नरकंकाल व अस्थियां आदि वस्तुऐं उसी समय के बताये जाते हैं।

— पहले भी कई मर्तबा हुये हैं अनुसंधान!

वहीं दूसरी ओर रूपकुंड के आसपास पडे अस्थियों के ढेर एवं नरकंकालों की खोज सर्वप्रथम वर्ष 1942 में भारतीय वन निगम के रेंजर एच. के. माधवल द्वारा की गई। जबकि भारतीय मानव सर्वेक्षण विभाग के पहले शारीरिक मानव वैज्ञानिक डॉ आर एस नेगी नें 1956 में रूपकुंड में मौजूद अस्थियों का अध्य्यन किया था। इनकी जांच कराने पर पहली बार डॉ नेगी नें बताया था की ये अस्थियां यूपी, पंजाब, राजस्थान आदि मैदानी इलाके के लोगों की है। बाद के बरसों में डा० मजूमदार नें भी डॉ नेगी के शोध के नतीजों का समर्थन किया था। वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार ये अस्थियां ६०० वर्ष से पहले की है। वन विभाग के एक अधिकारी ने १९५५ के सितम्बर में रूपकुंड क्षेत्र का भमण किया व कुछ नरकंकाल अस्थियां चप्पल आदि वस्तुऐं एकत्रित कर लखनऊ विश्वविद्यालय के मानव शरीर रचना अध्ययन विभाग के डा० डी० एन० मजूमदार को परीक्षणार्थ सौंप दी थीं। जबकि विशेषज्ञों द्वारा यह माना जाता है कि उन लोगों की मौत महामारी भूस्खलन या बर्फानी तूफान से हुई थी। 1960 के दशक में एकत्र नमूनों से लिए गये कार्बन डेटिंग ने अस्पष्ट रूप से यह संकेत दिया कि वे लोग 12वीं सदी से 15वीं सदी तक के बीच के थे। Human Skeletons in Roopkund Lake 2004 में, भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के एक दल ने उस स्थान का दौरा किया ताकि उन कंकालों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की जा सके। उस टीम ने अहम सुराग ढूंढ़ निकाले जिनमें गहने, खोपड़ी, हड्डियां और शरीर के संरक्षित ऊतक शामिल थे। लाशों के डीएनए परीक्षण से यह पता चला कि वहां लोगों के कई समूह थे। जिनमें शामिल था छोटे कद के लोगों का एक समूह (सम्भवतः स्थानीय कुलियों) और लंबे लोगों का एक समूह जो महाराष्ट्र में कोकणस्थ ब्रामिंस के डीएनए उत्परिवर्तन विशेषता से निकट संबंधित थे। हालांकि संख्या सुनिश्चित नहीं की गयी। 500 से अधिक लोगों से संबंधित अवशेष पाए गए हैं और यह भी माना जाता है कि छह सौ से अधिक लोग मारे गए थे।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय !

रेडियोकार्बन प्रवर्धक यूनिट में हड्डियों की रेडियोकार्बन डेटिंग के अनुसार इनकी अवधि 850 ई. में निर्धारित की गयी है जिसमें 30 वर्षों तक की गलती संभव है। Roopkund Lake खोपड़ियों के फ्रैक्चर के अध्ययन के बाद, हैदराबाद, पुणे और लंदन में वैज्ञानिकों ने यह निर्धारित किया कि लोग बीमारी से नहीं बल्कि अचानक से आये ओला आंधी से मरे थे। ये ओले, क्रिकेट के गेंदों जितने बड़े थे और खुले हिमालय में कोई आश्रय न मिलने के कारण सभी मर गये। इसके अलावा, कम घनत्व वाली हवा और बर्फीले वातावरण के कारण, कई लाशें भली भांति संरक्षित थी। उस क्षेत्र में भूस्खलन के साथ, कुछ लाशें बह कर झील में चली गयी। जो बात निर्धारित नहीं हो सकी वह है कि, यह समूह आखिर जा कहां रहा था।

वास्तव मे देखा जाय तो लोगों के लिए रूपकुंड और वहां मौजूद नरकंकाल आज भी रहस्य बना हुआ है। नंदा देवी राजजात यात्रा 2014 के दौरान मुझे भी इस सुंदर झील और यहां मौजूद नर कंकालो को करीब से देखने का अवसर मिला था। झील को देखकर मैं बहुत रोमांचित हुआ था। जबकि आश्चर्य भी हुआ था कि आखिरकार इतनी ऊचांई पर इतने नर कंकाल आखिर आये कहां से…?? जो आज हजारों साल बाद भी रहस्य बना हुआ है।

(नोट! — फोटो नंदा देवी राजजात यात्रा 2014 के दौरान रूपकुंड में ली गई थी)

Pardeep Farshwan

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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