(ज्योत्स्ना जोशी की कलम से)
अच्छे दिनों की आस में ये तस्वीर है मेरे देश की, मन इतना भरा हुआ है कि इस विषय पर कुछ भी कहना बेमायने है, लेकिन क्या करूँ एक महिला होने का दंश तो मैं भी झेल ही रही हूँ, तो फिर खामोश भी कैसे रहा जाए।
चीखना चिल्लाना तो हमको पड़ेगा ही चाहे आवाजेें संवेदनहीन सत्ता, व्यवस्था, सियासत पर बैठे हुक्मरान से टकराकर लौट ही क्यों न आ रही हो…..!
हर नजर से हमें अब डर लगने लगा है, रुह इतनी खौफजदा है कि घर से बाहर निकलने से पहले कई बार सोचना पड़ रहा है, मैं एक बहुत ही छोटी और गिरी हुई बात सोचती हूँ कभी कि अच्छा हुआ मेरी बेटी नहीं हुई, लेकिन बेटी नहीं हुई तो क्या हुआ, मैं खुद तो एक औरत हूँ ही, और ये हिंदू मुस्लिम, मंदिर मस्जिद पर लड़ने वाले देशवासी मेरी दो साल की बच्ची को भी रोंद रहे हैं तो अधेड़ उम्र की महिला को भी नोच रहे हैं।
कुछ वर्षो में ये सब इस हद तक होने लगा है कि अब हमें सोचना पड़ेगा कि आखिर इतनी मानसिक बीमारी समाज में अचानक कैसे फैल गई, इसका क्या कारण हो सकता, क्यों आदमी हैवान बन गया, जो माँ, बहन ,बेटी किसी को नहीं पहचान रहा।
मुझे इस सबका जो सबसे बड़ी वजह नजर आ रही है वो वाहियात अश्लीन वीडियो क्लिप का सोशल साइड पर चलना, बच्चा बच्चा आजकल फिजिकल रिलेशन से वाकिफ है, ये अति आधुनिकतावाद का अभिशाप है समाज में, कि सब अपने नैतिक मूल्यों को दरकिनारा करके सिर्फ़ अपने शारीरिक ज़रुरत के पीछे भागते हुए जानवरों से बत्तर हो गये हैं।
मुझे भय है इस बात का कि बेटियों के साथ यही सब होता रहा तो कहीं हो न हो एक दिन ऐसा न आ जाए कि बेटी का जन्म लेते ही माँ खुदी उसका गला घोट दे, और इतनी जहालत, दर्दनाक ,हादसो के बाद वो दिन दूर भी नहीं है,
तो इस सूरते हाल में सवाल सरकार पर भी खड़े होते है कि आप बेटियों की सुरक्षा के लिए क्या कर रहे हैं, (केवल बेटी बताओ बेटी पढ़ाओ पर सेमिनार मंच भाषण ) क्योंकि आप अच्छे दिनों के जुमले के साथ सत्ता पर क़ाबिज़ हुए है,
आप मैं भी चौकीदार हूँ, की बड़ी पैरवी के साथ संसद में पहुँचे है।
वो तमाम चौकीदार आज जवाब दे जिन्होंने भेड़ चाल में अपनी तस्वीर बदली थी कि आपने उस जुमले के लिए देश के हित में कितनी ड्यूटी निभाई, अपनी आत्मा पर हाथ रख कर कहिएगा, लेकिन दुर्भाग्य ये है कि आप में से बहुतेरे ऐसे भी है। जो निर्भया और उसकी सिलाई मशीन पर बात करके खुद को डिफेंस कर रहे हैं। वो शायद इसलिए…. बुरा मत मानना जरा कठोर शब्दों के साथ कह रही हूँ । वो शायद इसलिए क्योंकि अभी आपकी बेटी का नम्बर नहीं आया, लेकिन अगर देश ऐसे ही चलता रहा तो जल्द आ जाएगा।
माफ करना मैं ये मानती हूँ कि कोई भी सरकार या व्यक्ति विशेष यहाँ साश्वत नहीं है जो देश से बड़ा हो, और ना ही मेरी ऐसी कोई मजबूरी कि पार्टी या सरकारो को भगवान बना कर उनकी चरण वंदना करती फिरूँ। महिला प्रतिनिधित्व मौन हैं, मीडिया बिकी हुई है, विपक्ष कुछ सोचने समझने और बोलने की हालत में नहीं, और जनता खौफ़नाक भयभीत सी,
आजकल कुछ ऐसे अच्छे दिनों में आकर देश खड़ा हो गया है।
नोट – प्याज टमाटर का रोना फिर कभी रोऊँगी ,, प्रावेट सेक्टर बंद हो गये है, बैंको की दुर्दशा, रूपया टके का भी नहीं रहा, और भी न जाने क्या क्या उस पर फिर कभी सर पटकेंगे।