(जगदम्बा प्रसाद मैठाणी की कलम से)
आज देहरादून के नालापानी गांव के घने जंगलों के बीच में 45वा खलंगा मेला सागर ताल नाम की जगह पर मनाया जा रहा है इसका आयोजन खलंगा विकास समिति द्वारा किया जा रहा है। भारत में शायद पहला एंग्लो गोरखा वॉर यहीं देहरादून के नालापानी गांव के ऊपर – खलंगा के किले के क्षेत्र में 1814 -1815 में हुआ था। इस युध्द में अंग्रेजों के विरुद्ध सिर्फ गोरखाली सेना ही नहीं लड़ी थी उनके साथ गढ़वाली और कुमाउनी सैनिक भी थे ऐसे कुछ साक्ष्य मौजूद हैं यह बात कल मुझे RTI एक्टिविस्ट सुरेंद्र सिंह थापा जी ने बताई।
समय के साथ खलंगा विकास समिति को इस युध्द में भाग लेने वाले सैनिकों और उनसे जुड़े स्मारकों को भी संरक्षित रखने उनका दस्तावेजीकरण करने का कार्य करना चाहिए – ऐसे ही एक वीर थे – शेर सिंह कार्की जिन्होंने खलंगा युद्ध में भाग लिया . ये बात मुझे उनके परपोते कंडोली गांव के निवासी श्री मनीष कार्की ने बताई कि , उनके दादा के दादा श्री शेर सिंह कार्की ने खलंगा युध्द में भाग लिया था । इस स्मारक के शिलालेख पर लिखा है – क्रांतिकारी शहीद स्मारक – सूबेदार मेजर शेर सिंह कार्की -3 /2 , IInd Gorkha ,on 26 th July 1899 ( यह शेर सिंह कार्की के स्मारक के निर्माण की तिथि अंकित है )
मनीष बताते हैं कि उनके पर दादा श्री शेर सिंह कार्की जिनकी मृत्यु 1856 में हुई थी का एक छोटा स्मारक – सती वाला बाग़ जिसको अब कंडोली के नाम से जाना जाता है – वहां पर उनके दादा श्री जिया सिंह कार्की ने 1899 में बनवाया था। ये स्मारक आज भूमाफियाओं की नज़रों में है वे इस स्थान को कब्जाना चाहते हैं और शरारती तत्वों ने इस स्मारक के शिलालेख को नुक्सान पहुंचा दिया है। वर्ष 2017 में मुझे और गोर्खाली सुधार सभा की वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुश्री पूजा सुब्बा को मनीष कार्की ने बताया की उनके पिता जी स्वर्गीय यशवंत सिंह कार्की और दादा जी भी इस स्मारक को बचाने के लिए संघर्ष करते रहे हैं और अब हाल ही में 2016 में उनको हाई कोर्ट से इस स्मारक को बचाने के लिए स्टे प्राप्त हो गया है.
कहाँ पर है स्मारक- यह स्मारक सहस्रधारा रोड़ पर मयूर विहार कॉलोनी – के आगे गरीब दास आश्रम के पीछे – वाटर टैंक के पास है।
आज खलंगा मेले के अवसर पर यह प्रयास किया जाना चाहिए की – प्राकृतिक रूप से शानदार चन्द्रायणि मंदिर के चारोँ ओर बॉउंड्री वाल बनाने के बजाय – नालापानी में किसी स्थान पर – खलंगा कल्चरल हेरिटेज संस्थान बनाया जाये। उस मंदिर के प्राकृतिक स्वरुप की सुंदरता से छेड़ छाड़ ना की जाये ! सागर ताल से खलंगा के किले तक का नेचर ट्रेल बनवाया जाए बिना जंगल को नुक्सान पहुंचाए , सागर ताल के चारों और सिर्फ और सिर्फ सजावटी स्थानीय पेड़ पौधों का रोपण कर उनका संरक्षण किया जाये। वन विभाग ने जो वाटर ट्रेंचेस और ताल बनाये हैं उनके चारों और फूल पौधे लगाए जाएँ ! खलंगा के मुख्या स्मारक के बारे में कोई गाइड वहां साल भर रहे जो पर्यटकों और स्थानीय लोगों को खलंगा के इतिहास के बारे में बताये ! मेले के बाद उस पूरे क्षेत्र में जो गंदगी फ़ैल जाती है उसका सही निस्तारण हो।
गोर्खाली सुधार सभा ने पूर्व में IG उत्तराखंड पुलिस को इस स्मारक को बचाने के लिए पत्र लिखा था !