Tuesday, March 25, 2025
Homeदेश-प्रदेशकौन हैं सवर्ण? आखिर क्यों सवर्णों का यह भारत बंद जैसा आवाहन...

कौन हैं सवर्ण? आखिर क्यों सवर्णों का यह भारत बंद जैसा आवाहन करना पड़ा! कहीं केंद्र पर भारी न पड़े सवर्णों की अनदेखी!

कौन हैं सवर्ण? आखिर क्यों सवर्णों का यह भारत बंद जैसा आवाहन करना पड़ा! कहीं केंद्र पर भारी न पड़े सवर्णों की अनदेखी!

                       (मनोज इष्टवाल)
एसटी /एस सी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के संशोधन के बावजूद फिर उसमें दखल देकर ऐसे परिवर्तन ला देना कि सवर्ण जिन्हें न गटक सकें न थूक सकें ने आखिर मजबूर कर ही दिया कि वह लोकतंत्र की गरिमा में अपने अधिकारों पैरवी के लिए अपनी आवाज बुलंद करे ताकि राजनीतिक दलों की कूटनीतिक चालों में पिसते वर्ग के प्रति संविधान के कर्त्ता-धर्ता सजग हों व सवर्णों की कहीं न कहीं पैरोकारी कर सकें! भले ही कई सवर्ण समाज के लोगों ने इस एक्ट के लागू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट व विभिन्न हाई कोर्टों में जनहित याचिका दर्ज की है लेकिन विगत माह बेवजह एक सेवानिवृत कर्नल की गिरफ्तारी में एसटी/एससी एक्ट का जमकर गलत इस्तेमाल होने से लोगों में आक्रोश जागा है! वहीँ आरक्षण के दायरे में सवर्णों का पिछड़ना! जीरो या ३० प्रतिशत मार्क्स पर एसटी/एससी का नौकरियों पर लगना व ८० प्रतिशत मार्क्स के बाद भी सवर्णों का पिछड़ना कहीं न कहीं समाजिक दूरियां ला रहा है जिस से जन्म ले रहा यह आक्रोश आखिरकार आज भारत बंद के रूप में सामने आ रहा है! भले ही केंद्र सरकार ने इसका संज्ञान लेकर इसे सम्भालने की कोशिश की है लेकिन संज्ञान लेने की जरूरत ही क्यों आ पड़ी! यह बात सबसे महत्वपूर्ण है!

इसके पीछे कुछ महत्वपूर्ण बिंदु उजागर हुए हैं जिनमें एट्रोसिटी एक्ट- 89 के तहत बिना इन्क्वारी के भी सवर्णों पर कार्यवाही किया जाना देश का सवर्ण समाज वर्तमान में आरक्षित 131 लोकसभा सीटो और 1225 विधानसभा सीटो पर चुनाव नही लड़ सकता है! सवर्ण समाज की किसी भी आयोग में पैरोकारी न होना व न ही ऐसा कोई आयोग बनाया गया है जहाँ सवर्ण समाज के लिए सरकारी तौर पर अलग से जानकारियाँ उपलब्ध हों! और मनरेगा जैसी श्रम योजनाओं के अलावा स्वर्ण के लिए ऐसा कोई आयोग शायद ही गठित हो जहाँ से वह अन्य वर्गों की अपनी रोजी रोटी या रोजगार के लिए वैसे ही संसाधन जुटा सके जैसे कि अन्य जातियों के लिए गठित एक्ट हैं! देश के संविधान में कहीं भी पुन: सवर्ण समाज की पैरोकारी के लिए राजनेताओं द्वारा कोई संसोधन एक्ट गठित हुआ हो ऐसा भी बहुत कम संज्ञान में आता है और अगर कभी लाया भी गया हो तो उसका प्रचार प्रसार विधिवत किया गया हो ऐसा भी ध्यान नहीं आता!

वहीँ सवर्णों को सजा देने के लिए NCSC और NCST का गठन किया गया है ताकि वह बेवजह अन्य जातियों के साथ जुल्म न कर सके लेकिन अन्य जातियों को यह सुविधा जरुर एससी/एसटी एक्ट में दे दी गयी हैं कि अगर आपको किसी भी सवर्ण को जेल भेजना हो आप कभी भी उस पर आरोप मढकर उसे जेल पहुंचा सकते हैं! जिसकी सजा देने के लिए हर जिले में विशेष SCST न्यायालय खोले गए हैं! यही नहीं स्कूल कालेजों में भी ऐसी कोई छूट सवर्णों के लिए नहीं है जिसका वह लाभ ले सके!
जबकि अन्य वर्ग इसका पूरा पूरा लाभ ले रहे हैं वहीँ सरकारी नौकरियों का भी यही हाल है! सवर्ण रात दिन घिस-घिसकर ९० प्रतिशत नम्बर से भी किसी परीक्षा को उत्तीर्ण कर दे तब भी यह संशय है कि उसे नौकरी मिलेगी भी या नहीं जबकि अन्य वर्गों के लिए मात्र ३० से ४० प्रतिशत नम्बर लाने पर भी नौकरी मिल सकती है ऐसा उनका सोचना है!

वहीँ दूसरी ओर महामहिम राष्ट्रपति द्वारा एससी/एसटी संशोधन कानून को मंजूरी दिए जाने के बाद जो क़ानून लागू होता है उसके तहत अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (एससी एसटी) को सताने पर तुरंत मामला दर्ज होगा और गिरफ्तारी होगी। मामला दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच और गिरफ्तारी से पहले इजाजत लेने की कोई जरूरत नहीं है। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी करने वाले एससी एसटी संशोधन कानून 2018 को मंजूरी दे दी है। राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद एससी एसटी कानून पूर्व की तरह सख्त प्रावधानों से लैस हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने गत 20 मार्च 2018 को दिये गये फैसले में एससी एसटी कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए दिशा निर्देश जारी किये थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून में शिकायत मिलने के बाद तुरंत मामला दर्ज नहीं होगा डीएसपी पहले शिकायत की प्रारंभिक जांच करके पता लगाएगा कि मामला झूठा या दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं है। इसके अलावा इस कानून में एफआईआर दर्ज होने के बाद अभियुक्त को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी और सामान्य व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले एसएसपी की मंजूरी ली जाएगी। इतना ही नहीं कोर्ट ने अभियुक्त की अग्रिम जमानत का भी रास्ता खोल दिया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देशव्यापी विरोध हुआ था। जिसके बाद सरकार ने कानून को पूर्ववत रूप में लाने के लिए एससी एसटी संशोधन बिल संसद में पेश किया था और दोनों सदनों से बिल पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था।
राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद संशोधन कानून प्रभावी हो गया है। इस संशोधन कानून के जरिये एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून में धारा 18 ए जोड़ी गई है जो कहती है कि इस कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है। और न ही जांच अधिकारी को* *गिरफ्तारी करने से पहले किसी से इजाजत लेने की जरूरत है।
संशोधित कानून में ये भी कहा गया है कि इस कानून के तहत अपराध करने वाले आरोपी को अग्रिम जमानत के प्रावधान (सीआरपीसी धारा 438) का लाभ नहीं मिलेगा। यानि अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी। संशोधित कानून में साफ कहा गया है कि इस कानून के उल्लंघन पर कानून में दी गई प्रक्रिया का ही पालन होगा।
साफ है कि अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बिल्कुल उलट होगा। पूर्व की भांति इस कानून में शिकायत मिलते ही एफआईआर दर्ज होगी। अभियुक्त की गिरफ्तारी होगी और अभियुक्त को अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी यानी जेल जाना होगा। कानून में संशोधन के बाद वैसे तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कोई महत्व नहीं रह गया है, लेकिन बताते चलें कि फैसले के खिलाफ केन्द्र सरकार की पुनर्विचार याचिका अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। पुनर्विचार याचिका पर मुख्य फैसला देने वाली पीठ के न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल व यूयू ललित की पीठ सुनवाई कर रही थी और इस पीठ ने फैसले पर अंतरिम रोक लगाने की सरकार की मांग ठुकरा दी थी, लेकिन इस बीच जस्टिस गोयल सेवानिवृत हो चुके हैं ऐसे में पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए नयी पीठ का गठन होगा।
यह सब होने के बाद अब सवर्ण समाज को चिंता नहीं बल्कि डर सताने लगा है कि आखिर देश में उसका स्थान है कहाँ? क्या वह भारतीय संविधान का आदर करते हुए सिर्फ उस भीड़ तंत्र में शामिल होकर ऐसे नेताओं को अपना मत देता रहे जो कभी इस समाज की पैरोकारी के लिए चिंतित नहीं दिखाई देते! कहीं ये तो नहीं कि हम उस लिस्ट में शामिल होने वाले पहले नागरिक हों जिन्हें हर चीज हासिल करने के लिए सिर्फ और सिर्फ पिछड़ना मंजूर है क्योंकि आरक्षण की लाठी या बैशाखी सिर्फ पिछड़े समाज के लिए ही होती है लेकिन यहाँ बढ़ता समाज शायद इसीलिए पिछड़े समाज का पीछा करने को मजबूर है क्योंकि उसके पास सब कुछ होने के बावजूद भी कुछ नहीं है! बहरहाल इन सामाजिक मुद्दों की खाई पाटने के लिए सर्व समाज को एक जुट होकर आरक्षण उस हर वर्ग के लिए लागू कर देना चाहिए जो गरीब और पिछडा हो जातियों के आधार पर ऐसे एक्ट लाना यकीनन सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक टंटे के अलावा और कुछ भी नहीं!(सम्पादकीय)

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES