पौड़ी 7 सितंबर 2019 (हि. डिस्कवर)
यह यकीनन डॉक्टरों द्वारा एक बच्ची के साथ किया गया बड़ा खिलवाड़ कहा जा सकता है। एक बहादुर बच्ची अपनी जान की परवाह किये बगैर अपने छोटे भाई को बाघ के चंगुल से बचा लेती है। बाघ इस दौरान उसे बुरी तरह घायल कर देता है लेकिन यह बच्ची फिर भी अपने भाई को अपनी पकड़ में ऐसे जकड़ लेती है कि बाघ उसका बाल भी बांका नहीं कर सकता। कोलाहल सुनकर आखिर बाघ को घायल बच्ची व उसके भाई को छोड़कर भागना पड़ता है। इस बिटिया को फौरन मीलों दूर स्थित कोटद्वार बेस अपस्ताल लाया जाता है जहां डॉक्टर्स मनमर्जी थोपते हुए उसे हायर सेंटर रिफर कर देते हैं। सुनिये पूरी दास्तां…!
हायर सेंटर या घायल सेंटर 11 साल की बहादुर लड़की जिसने अपनी हिम्मत का परिचय देते हुए अपने छोटे भाई को बाघ से बचाया कोटद्वार बेस हास्पिटल के डाक्टरों की दिखावे की नीति से जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही है।
जी हां पौड़ी गढ़वाल के पोखडा ब्लाक के देवकण्डाई गांव की ग्यारह साल की राखी जो अपने छोटे भाई को बचाने के चक्कर में घायल हो गई थी उसे कोटद्वार बेस हास्पिटल के डाक्टरों ने हायर सेंटर रैफर कर दिया जिसके बाद राखी के परिजन उसे लेकर दिल्ली सफदरजंग अस्पताल ले गए जहां पहले तो डाक्टरों ने उसका ईलाज करने से मना कर दिया पर बाद में सफदरजंग के सीनियर डाक्टर के कहने पर उसका सीटी स्कैन करके बाहर से दवाई लेने के लिए लिखकर घर भेज दिया। सफदरजंग के डाक्टरों ने कहा कि कोटद्वार बेस अस्पताल ने रैफर करने में कंजूसी की है उन्होंने जहां रैफर करना है वहां का नाम पता कुछ नहीं लिखा है।
परिजनों ने सफदरजंग अस्पताल के डाक्टरों से अनुरोध किया कि बच्ची की हालत नाजुक है ऐसे में वह उसको लेकर कहां जाएंगे? पर डाक्टरों ने उसे भर्ती करने से साफ मना कर दिया। ऐसे में परिजन उस बच्ची को लेकर दिल्ली अपने रिश्तेदारों के चले गए।
समाजसेवी कविन्द्र इष्टवाल से उस बच्ची की मौसी की फोन पर हुई बात पर उक्त बातें उन्होंने कही। कविन्द्र इष्टवाल ने कहा कि अस्पताल प्रशासन इसके लिए पूरी तरह दोषी है पहले हायर सेंटर के नाम पर अपना पल्ला झाड़ दिया जाता है बाद में मरीज इधर उधर भटकता रहे। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय विधायक सतपाल महाराज को ढूंढते आंखें थक जा रही हैं पर वो कहीं नहीं दिखाई दे रहे हैं। उन्हें कम से कम क्षेत्र में आम जनता के सुख दुःख में सहयोगी बनना चाहिए पर ऐसा नहीं हो पा रहा है शायद वो महाराज हैं जनता से मिलना उनकी शान के खिलाफ है।
इसमें किसका दोष है रैफर करने वाले डाक्टर का या फिर उस अस्पताल का जहां रैफर किया गया है। ऐसे केसों में मानवता क्यों नहीं दिखाते हैं डाक्टर। अगर किसी मरीज के रिश्तेदार न हों तो वो इन डाक्टरों के भरोसे तो जान से पैदल हो जाएगा। हायर सेंटर को हायर सेंटर रहने दो जनाब उसे घायल सेंटर न बनाओ नहीं तो आम आदमी कहीं का भी नहीं रहेगा।