Thursday, June 26, 2025
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कैप्टन शूरवीर सिंह पंवार हिमालय का विराट व्यक्तित्व।

(वरिष्ठ पत्रकार शीशपाल गुसाईं की कलम से)

कैप्टन शूरवीर सिंह पंवार प्राचीन ग्रन्थों को खोज निकालने वाला सेनापति थे। यही कारण था उन्हें बड़े बड़े इतिहास कार
हिमालय का विद्वान कहते थे। वह एक विनम्र साहित्यि सेवक
ही नहीं, एक अच्छे अफसर भी थे। उनकी आज के दिन 5 अप्रैल 1991 को पुराने दरबार में देहांत हो गया था। उनका जितना
सम्मान किया जाये कम है।

1951 की इस फोटो की पहली पंक्ति में हैं पंडित नेहरू जी, शेख अब्दुल्ला, ओर कैप्टन शूरवीर सिंह पंवार वर्दी में। तब वह सेना में कैप्टन रिक्रूटमेंट थे। आज उस पोस्ट में लेफ्टिनेंट जनरल होता है।
शायद 1952 से कश्मीर में धारा 370 लगाये जाने की तैयारी थीं।
आज संयोग देखिये कैप्टन साहब की 29 वीं पुण्यतिथि में धारा 370 की उपयोगिता खत्म हो गई है। वक्त वक्त की बात है।

कैप्टन साहब का जन्म 1907 से लेकर 1991 का इतिहास बेहद
उजला रहा है। उनके ताऊ जी कीर्ति शाह राजा रहे, लेकिन उनमें घमंड नहीं था। फिर भाई नरेंद्र शाह राजा बने। किन्तु उन पर कोई
फर्क नहीं पड़ा। वह अपनी लाहौर में पढ़ाई के दम पर मजिस्ट्रेट,
कैप्टन, प्रसिद्ध इतिहास कार, हिंदी के विद्वान, प्राचीन ग्रन्थों
का भण्डार वाला व्यक्ति बने। खूबी होती है किसी व्यक्ति की।

कहाँ से निकले कैप्टन शूरवीर सिंह यह जानना जरूरी है।
राजा श्री प्रताप शाह के तीन पुत्र हुए थे। पहले श्री कीर्ति शाह, श्री
विचित्र शाह , श्री सुरेन्द्र शाह। बड़े भाई को राजा बनना होता है।
इसलिए कीर्ति शाह राजा बने। विचित्र शाह छूट गए। कीर्ति शाह की नरेंद्र शाह, मानवेन्द्र शाह , मनुजयेंद्र शाह ( जीवित ) वाली चेन है। लेकिन विचित्र शाह के चार बेटे हुए। राव वीरेंद्र सिंह , कैप्टन शूरवीर सिंह, बददेव सिंह, युद्धवीर सिंह। कैप्टन साहब के अलावा किसी भाई की संतान नहीं हुई। कैप्टन शूरवीर के दो बेटी , एक बेटा हुआ। बड़ी बेटी भवनेश्वरी हिमाचल में लेफ्टिनेंट जनरल पीसी मनकोटिया से बिहाई। बेटा समर विजय सिंह , 1972 बैच आईपीएस, जो राजस्थान पुलिस के डीजी भी रहे। तीसरी बेटी रीता कुमारी हिमाचल के ही पीसी चौहान जो तमिलनाडु कैडर के आईएएस रहे के साथ विवाहित है। कैप्टन साहब ने जैसे पढ़े लिखे लिखे थे अपने दामादों को भी वैसा ही ढूढा।

कैप्टन साहब के छोटे भाई का नाम श्री बलदेव सिंह था। जो
कीर्ति नगर में मजिस्ट्रेट थे। उस वक्त राजशाही खत्मा का आंदोलन
कीर्ति नगर से शुरू, उग्र हुआ। ऐसा इतिहास में कहा जाता है कि,
आंदोलन कारियो ने बलदेव सिंह के कपड़े फाड़ दिए, जबाब में उन्होंने गोली चलाने के आदेश दिए। जिसमें नगेन्द्र सकलानी, मोलू
भरदारी शहीद हुए। उनके शवो को बड़े जत्थे में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री त्रेपन सिंह नेगी के नेतृत्व में टिहरी लाया गया। यही आखिरी ताबूत बनीं। मैं बलदेव सिंह के इस आदेश की निंदा करता हूँ। शूरवीर सिंह इस घटना से अलग थे। फिर इतिहास में एक भाई अपराधी, एक भाई मंत्री कई ऐसे देखने में आये। एक ओर गोली कांड भी याद आता है कहा जाता है वन, राजस्व अधिकारीयो ने तिलाड़ी गोली कांड का आदेश दिया था ? जिसमें निहत्थे लोग मारे गए थे। यमुना में उसे जलियांवाला बाग कांड कहते हैं। जिन्होंने आदेश दिया। वह तो इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनके वंशज हैं, जिनका नाम इतिहास में है।

1962 चीन युद्ध के बाद वह रिटायर्डमेन्ट आ गए थे। उन्होंने अपना घर पुराणा दरबार में अपने दिन बिताये। उन्होंने ताम्र पत्र पर वर्षो वर्षो प्रचीन इतिहास को विद्वान से विमर्श कर सही चीज सामने लाई। उनका घर वही था जहाँ गुलेरिया महारणी रहती थीं। हालांकि कीर्ति शाह ने नए दरबार में रहना शुरू कर दिया था। जो भाई राजा न बन सका, उसके बेटे ने पुराने दरबार में ही रहना था। वह 80 के दशक में प्राचीनतम खोज में इस कदर बिजी रहते थे कि भित्तियों में साँप चलते थे लेकिन कैप्टन साहब का कुछ नहीं बिगाड़ते थे। यह बात मुझे यशवंत सिंह कटोच जी ने बताई। कठौच जी तब पीआईसी में लेक्चरर थे। कैप्टन साहब से उठना बैठना था उनका। मैं तो 1994 में टिहरी आया। मेरे आने से तीन साल पहले कैप्टन साहब दुनिया से चले गए थे। उन्होंने दौलत तो नहीं छोड़ी लेकिन अपने पोतों कीर्ति, भवानी, के लिए वह विरासत छोड़ गए जिन्हें देख कर शूरवीर सिंह हर दिन जिंदा होने का ऐहसास देते हैं।

30 नवंबर 1976 को वाराणसी से श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी ,
डॉ महावीर प्रसाद गैरोला को लिखते हैं कि आपने कैप्टन शूरवीर सिंह पंवार को सम्मानित करने का जो फैसला लिया है मुझे यह जानकर प्रश्ननता हुई। वे सब प्रकार के सम्मान के योग्य है। मैं उनके व्यक्तित्व से परिचित हूँ। वह एक काबिल हिंदी के विद्वान हैं।

13 सितम्बर 1958 को दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदी के विभागाध्यक्ष श्री महेंद्र कुमार कैप्टन शूरवीर सिंह को पत्र लिखते हैं अभी हाल में मेरी छुट्टियां हो रही हैं मैं बहुत शीघ्र ही आपका दर्शन लाभ करूंगा।
आपकी उदारता ओर विसाल ह्रदयता के आगे मैं नतमस्तक हूँ।
आप मनुष्य ही नहीं देवता हैं। अधिक क्या कहूँ धन्यवाद देना मुझे पसंद नहीं क्योंकि यह कृतघ्न लोगों द्वारा व्यवहार में आने लगा है।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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