(मनोज इष्टवाल)
ऊन, पशम और मखमल ये तीनों जौनसार-बावर की लोक संस्कृति के जुड़े ऐसे अंग हैं जो जौनसारी सभ्यता की शुरूआती दौर से वर्तमान तक उनके परिधानों की शोभा बढाते रहे! जहाँ भी जब भी किसी प्रदेश के लोक समाज लोक संस्कृति की बात होती है तो अक्सर उस प्रदेश की जनजातियों को खंगाला जाता है!
आज जब देश के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी केदार नाथ में जौनसारी परिधान (चोडा-जंगेल) में दिखे तो उन आलोचकों के पास शब्द नहीं बचे जो कल तक कह रहे थे प्रधानमंत्री ने उत्तराखंड में रहकर यहाँ के परिधानों की जगह लद्दाखी परिधानों को ज्यादा तबज्जो दी है!यह बताना तो मुश्किल होगा कि आज जो वस्त्र उनके तन पर विराजमान हैं वह ऊन, पशम और मखमल में से किस के बने हैं या इन तीनों को ही मिक्स करके निर्मित हैं लेकिन इतना तय है कि उनके द्वारा जो चोड़ा जंगेल आज पहना गया है वह ऊनि या पश्मीना निर्मित है! जंगेल यानि पैजामा व चोड़ा यानि ओवरकोटनुमा वस्त्र! आपको बता दें कि ये ऐसे वस्त्र हैं जो बर्फ गिरने या बारिश होने पर भी अंदर पानी नहीं घुसने देते और मात्र एक बार झटक लेने से मामूली सी हवा या धूप में सूख जाया करते हैं! इनका तापमान कम से कम 32 से 35 डिग्री अनुमानित है! इन्हें जौनसार-बावर क्षेत्र में सर्दियों में पहना जाता है ! कहा जाता है कि ये वस्त्र सर्वप्रथम हिमाचल के सिरमौरी राजा ने सबसे पहले धारण किये थे तब जौनसार बावर का यमुना तमसा नदी क्षेत्र राजा सिरमौर के अधीन था इसलिए आज भी इसे जौनसार क्षेत्र में सिरमौरी चोडी या सिरमौरी चोडा के नाम से जाना जाता है!
आज भले ही प्रधानमंत्री टोपी में नहीं दिखे फिर भी उनके द्वारा पहनी जाने वाली हिमाचली टोपी सिर्फ हिमाचल की ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के रवाई, जौनपुर, जौनसार-बावर क्षेत्र के लोक पहनावे में भी शामिल है अत: इस पर उत्तराखंड की लोकसंस्कृति का रंग भी चढ़ा है! इस टोपी में निर्माण भी ऊँन, पश्मीना व मखमल का प्रयोग होता है!
हिमाचल प्रदेश में मुख्य रूप से तीन तरह की टोपियां प्रचलन में हैं. इनमें किन्नौरी, बुशहरी व कुल्लुवी टोपी शामिल हैं. इनमे सबसे ऊपर है किन्नौरी टोपी. किन्नौरी व बुशहरी टोपी में बड़ा ही मामूली सा अंतर है. मुख्यतः तीन अंतर हैं, पहला किन्नौरी टोपी में मखमल की पट्टी चौड़ी होती है जबकि बुशहरी टोपी में कम चौड़ी. दूसरा टोपी के किनारे किन्नौरी के तीखे तो बुशहरी के गोल होते हैं. तीसरा टोपी के मखमल के साथ लगने वाली मगज़ की पट्टी जो किन्नौरी में तीन पट्टियां तो बुशहरी में दो पट्टियां होती है. ये अंतर इतना कम होता है कि केवल जानकार ही पहचान सकते हैं जबकि दोनों ही एक समान नजर आती हैं. इसके अलावा कुल्लुवी, भरमौरी, सिरमौरी, लाहुली, नेहरू, चम्बायाली और ठियोगी आदि टोपियां कई तरह के अलग अलग रंगों व डिजाइनों में पूरे हिमाचल में प्रचलित हैं!
बहरहाल योग-ध्यान गुफा से निकलने के बाद आज प्रधानमंत्री पूरे उत्तराखंडी परिधानों में यहाँ की लोकसमाज में उदृत परिधान संस्कृति का प्रसार प्रचार करते नजर आ रहे हैं!