काश कि कोई दिल्लू दास को जीवित कर सकता….?
(मनोज इष्टवाल)
वो कच्ची बनाता था कच्ची पीता था और फिर गॉव भर में रात भर हुडदंग मचाता था..! लेकिन जब पीता नहीं था तब उसके बराबर अच्छा व्यक्ति भी कोई नहीं था! या फिर इज्जत देता था… आजतक तो मुझसे…! शायद उसका कारण यह भी हो सकता है कि उसके पुरखों को मेरे पुरखे ही हमारे गॉव लाये थे और उन्हें अपनी जमीन देकर खेतिहर भी बनाया. दिल्लू दास के पिता शत्रु दास ढोल सागर के ज्ञाता हुए करते थे! लेकिन उनके जाते ही वह विद्या उन्ही के साथ शहीद हो गई…!
दिल्लू दास की कहानी भी अजीब रही..! सरकारी सेवा के लिए ग्राम सेवक में चयन हुआ लेकिन नहीं जा पाया …! बचपन से देखता आया था उसे वह लमडेर किस्म का व्यक्ति था!
(फाइल फोटो)
जिंदगी के आखिरी दिनों में वह मेरे बड़े भाई (ताऊ जी के बेटे) के कहने पर उनके बंद मकान के ओबरा (निचले) कमरे में शिफ्ट हो गया था ..बेचारा करता भी क्या…! मकान टूट गया था कोई जनप्रतिनिधि ऐसा भी तो नहीं था जो समाज कल्याण से उसके मकान निर्माण के लिए आवेदन डालता सबको डर भी यही रहता था कि पैंसा आएगा तो यह दारु में उड़ा देगा. उसकी बीबी गौ के समान है..लेकिन दिल्लू ज़रा रसिक मिजाज था तबियत हरी करने वाला.
मेरे बड़े भाई जो दरोगा से रिटायर होकर घर आये. दिल्लू दास उनका बचपन का मित्र जो ठहरा. उसका दुःख नहीं देख सके और उसे कहा कि अपनी पत्नी के साथ मेरे घर में शिफ्ट हो जा….! सोचा शायद दिल्लू पर कुछ तो प्रभाव पडेगा लेकिन दिल्लू दिल्लू हुआ…! रोज दारु बनाना और जाखाल में जाकर बेचना बची हुई दारु का सौदा करना और फिर उसी व्यक्ति के साथ छक्ककर दारु पीना उसकी दैनिक क्रिया में शामिल था. सच पूछो तो उसकी नसों में खून की जगह कच्ची शराब ही दौड़ा करती थी. वह गर्मियों में जब पास से गुजरता तो उसके पसीने से भी शराब की ही बदबू आती थी. कोई कभी कह भी नहीं सकता कि कहीं दिल्लू दास ने कभी लेबरगिरी की होगी! जितना समय भी उसके पास बचा होता या तो वह कच्ची दारु निकालने के लिए होता या फिर गप्पें मारने के लिए! मुझे एक बात आज भी कचोटती है कि एक दिन मैंने उसके पीने पर उसे कड़े शब्द कह दिए ! शायद इसलिए क्योंकि वह गाँव के रिश्ते में बेटा लगता था! गाँव के रिश्ते देखिये कितने मधुर होते हैं वहां जाति भेद कहीं नहीं होता भले ही छुआ छूत रही हो! कड़े शब्दों में मुझे कभी यह लगता है कि वह मेरा ये अहम तो नहीं था कि मैं उच्च कुलीन ब्राह्मण और वह एक शिल्पकार?दिल्लू ने कभी यह शिकायत दर्ज नहीं करवाई कि मैं उस पर मारने तक दौड़ पड़ा था ! उसने यह कभी नहीं कहा कि मैं उस से नाते में बड़ा हूँ लेकिन वह उम्र में मेरे बड़े भाई के साथ का है!
बेचारा दिल्लू….आखिर शराब ने जब पीना शुरू किया तो ऐसा किया कि पहले उसे लकवा मार गया और आखिर सन 2014 में उसे काल ने अपना ग्रास बना दिया….भला आदमी था बेचारा….? वह मेरे गाँव का दिल्लू दास..!