Tuesday, February 11, 2025
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उत्तराखंड का यूसीसी: वैवाहिक शर्तों और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत विधिक ढांचा

देहरादून (हि. डिस्कवर)
पुलिस मुख्यालय स्थित सभागार में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) के विषय पर एक महत्वपूर्ण वर्कशॉप का आयोजन किया गया। जिसमें वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों सहित विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि व पदाधिकारियों द्वारा प्रतिभाग कर अपने-अपने विचार रखे और विभिन्न विधिक बिन्दुओं पर चर्चा की गयी।

श्रीमती निवेदिता कुकरेती, पुलिस उप महानिरीक्षक/ अपर सचिव गृह उत्तराखण्ड शासन ने प्रस्तुतिकरण के माध्यम से समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) के विधिक बिन्दुओं- विवाह, विवाह विच्छेद, विल, सहवासी सम्बन्ध, के पंजीकरण की अनिवार्यता, व उसकी प्रक्रिया पर विस्तार पूर्वक पर प्रकाश डाला। साथ ही संहिता के विधिक प्रावधानों के उल्लंघन के दाण्डक परिणामों के बारे में बताया गया। संहिता को लागू करने व उसकी प्रक्रिया के तहत संबंधित पदाधिकारियों के दायित्व व कर्तव्यों के बारे में भी बताया गया।

वर्कशॉप के दौरान विभिन्न समुदाय के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे, जिन्होंने संहिता के लागू होने पर उनके अपने सामाजिक अधिकार से जुड़े बिन्दुओं के सम्बन्ध में उत्सुकता के साथ प्रश्न कर परिचर्चा में सक्रिय भाग लिया। वर्कशॉप के दौरान प्रस्तुतिकर्ता व विधिक जानकारों द्वारा उनके प्रश्नों का उत्तर देकर यह स्पष्ट किया गया कि संहिता द्वारा सभी धर्म व समुदाय के सामाजिक अधिकारों में सामंजस्य स्थापित करते हुए उसमें एकरूपता लाने का प्रयास किया गया है। इस संहिता से लोगों में एवं विभिन्न धर्म व समुदाय के बीच समन्वय व एकरूपता स्थापित होगी। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने अपने विचार साझा किए और उत्तराखंड में कानून के बेहतर क्रियान्वयन के लिए उपयोगी सुझाव भी दिए।

पुलिस महानिदेशक उत्तराखण्ड श्री दीपम सेठ द्वारा कहा गया कि संहिता के लागू होने से इसके दाण्डिक परिणामों के सापेक्ष पुलिस के क्या कर्तव्य होंगे और लोगों में पंजीकरण की अनिवार्यता, विधिक परिणामों व उनके विधिक अधिकारों पर क्या प्रभाव पड़ेगा और संहिता का सफल क्रियान्वयन कैसे किया जाएगा के सम्बन्ध में भविष्य में भी इस तरह की वर्कशॉप आयोजित किये जाएंगे, ताकि लोगों की शंकाएं दूर की जा सके और लोगों को संहिता के सम्बन्ध में जागरूक किया जा सके।

वर्कशॉप में श्री वी0 मुरूगेशन, अपर पुलिस महानिदेशक, अपराध एवं कानून व्यवस्था, उत्तराखण्ड श्री ए पी अंशुमान, अपर पुलिस महानिदेशक, प्रशासन / अभिसूचना एवं सुरक्षा, समस्त पुलिस महानिरीक्षक, पुलिस उप महानिरीक्षक एवं अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारीगण सहित श्री मुफ्ती शमून कासमी, अध्यक्ष उत्तराखण्ड मदरसा शिक्षा बोर्ड, श्री श्री नदीम जैदी सदस्य वक्फ ट्रिब्यूनल, श्री जावेद अहमद, सहायक अभियोजन अधिकारी, श्रीमती सीमा जावेद, पूर्व सदस्य राज्य अल्पसंख्यक आयोग, श्री गुरबक्श सिंह राजन- प्रधान श्री गुरु सिंह सभा, श्री गुरजिंदर आनंद, सैमुअल पॉल लाल अध्यक्ष उत्तराखण्ड क्लर्जी फैलोशिप, अभिनव जैकब – Father Church Nehrugram, श्री देवेंद्र भसीन पूर्व प्राचार्य डीएवी पीजी कॉलेज देहरादून, प्रोफेसर सत्यव्रत त्यागी- डीएवी पीजी कॉलेज देहरादून, डॉ० अरुण कुमार रतूड़ी, डीएवी पीजी कॉलेज देहरादून, श्री सुनील मैसोन-दून उद्योग व्यापार मंडल नेता, श्रीमती गीता जैन- प्रिंसिपल राजकीय दून मेडिकल कॉलेज, श्रीमती गीता खन्ना-अध्यक्ष राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग सम्मिलित रहे।

उत्तराखंड सरकार सामाजिक समरसता और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए “यूनिफॉर्म सिविल कोड अधिनियम, 2024” को लागू करने जा रही है।  यह अधिनियम राज्य के सभी निवासियों पर लागू होगा, चाहे वे राज्य के भीतर रह रहे हों या बाहर। हालांकि, संविधान के अनुच्छेद 342 और 366(25) के तहत अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों तथा भाग XXI के अंतर्गत संरक्षित प्राधिकार/अधिकार-प्राप्त व्यक्तियों व समुदायों पर यह अधिनियम लागू नहीं होगा।

मुख्य प्रावधान और उद्देश्य


इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य विवाह संबंधी कानूनी प्रक्रियाओं को सरल, सुव्यवस्थित और पारदर्शी बनाना है। यह कानून व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है।

विवाह के लिए पात्रता:

दोनों पक्षों में से किसी के पास जीवित जीवनसाथी नहीं होना चाहिए।

दोनों मानसिक रूप से स्वस्थ और विवाह की अनुमति देने में सक्षम हों।

पुरुष की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और महिला की 18 वर्ष होनी चाहिए।

दोनों पक्षकार निषिद्ध संबंधों की परिधि में न हों।

विवाह पंजीकरण की अनिवार्यता:

अधिनियम लागू होने के बाद, विवाह का पंजीकरण 60 दिनों के भीतर अनिवार्य होगा।

26 मार्च 2010 से अधिनियम लागू होने तक हुए विवाहों का पंजीकरण 6 महीने के भीतर करना होगा।

26 मार्च 2010 से पहले हुए विवाह, यदि सभी कानूनी योग्यताओं को पूरा करते हैं, तो वे भी (हालांकि अनिवार्य नहीं है) पंजीकरण कर सकते हैं।

पूर्व में नियमानुसार पंजीकरण करा चुके व्यक्तियों को दोबारा पंजीकरण कराने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन उन्हें अभिस्वीकृति (Acknowledgement) देनी होगी।

पंजीकरण प्रक्रिया:

विवाह पंजीकरण ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से किया जा सकेगा।

आवेदन प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर उप-निबंधक को निर्णय लेना अनिवार्य है।

15 दिनों के भीतर निर्णय न होने पर आवेदन स्वतः निबंधक को अग्रेषित होगा।

अभिस्वीकृति से संबंधित आवेदन 15 दिनों के पश्चात स्वतः स्वीकृत माना जाएगा।

पारदर्शी अपील प्रक्रिया:

आवेदन अस्वीकृत होने पर पारदर्शी अपील प्रक्रिया उपलब्ध है।

मिथ्या विवरण देने पर दंड का प्रावधान है।

पंजीकरण न होने का प्रभाव:

पंजीकरण न होने मात्र से विवाह अमान्य नहीं माना जाएगा।

निगरानी और क्रियान्वयन

राज्य सरकार विवाह पंजीकरण की प्रक्रिया की निगरानी और क्रियान्वयन के लिए महानिबंधक, निबंधन और उप-निबंधकों की नियुक्ति करेगी। ये अधिकारी संबंधित अभिलेखों का संधारण और पंजीकरण प्रक्रिया को सुचारू रूप से सुनिश्चित करेंगे।

उत्तराखंड का यह यूनिफॉर्म सिविल कोड, वैवाहिक शर्तों और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा के साथ-साथ समाज में एकरूपता और समरसता स्थापित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह कानून न केवल विवाह प्रक्रिया को सरल बनाएगा, बल्कि इसे अधिक पारदर्शी और जनहितैषी भी बनाएगा।

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